इस मुहूर्त में करें कलश की स्थापना, बन रहा हैं यह योग

त्याग, तप, साधना और संयम का महापर्व चैत्र नवरात्र मंगलवार से शुरू हो रहा है। नवरात्र के पहले दिन विधिविधान से घट स्थापना के साथ प्रथम आदिशक्ति मां दुर्गा के शैलपुत्री स्वरूप का भव्य शृंगार, पूजन किया जाएगा। देवी के निमित्त अखंड ज्योति जलाकर भक्त नौ दिन के व्रत का संकल्प लेंगे। घरों और मन्दिरों में नौ दिनों तक श्रद्धापूर्वक मां भगवती की पूजा-अर्चना की जाएगी। जप, तप, यज्ञ, हवन, अनुष्ठान करके भक्त महामारी से मुक्ति की कामना करेंगे। हिन्दू पंचांग के अनुसार, नवरात्र के साथ ही नवसंवत्सर की शुरुआत भी होगी।

नवरात्र का समापन 22 अप्रैल को होगा। कोरोना संक्रमण को देखते हुए शक्तिपीठ कल्याणी देवी, ललिता देवी,अलोपशंकरी देवी समेत सभी देवी मंदिरों में सुबह छह बजे से पट खुलने के बाद भक्त दर्शन-पूजन शुरू कर देंगे। मंदिरों में सोशल डिस्टेंसिंग के लिए गोल घेरे बनाए गए हैं। मास्क और सेनेटाइजर का भी व्यवस्था की गई है। मन्दिर के गेट पर भक्तों का थर्मल स्कैनिंग भी की जाएगी। कोरोना गाइड लाइन के मुताबिक रात 9 बजे के बाद मन्दिर के पट बन्द हो जाएंगे। हालांकि इस बार त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव को देखते हुए मंदिरों में पुलिस व्यवस्था कम रहेगी। इसलिए पांच-पांच भक्तों को एक साथ दर्शन-पूजन के लिए भेजने की व्यवस्था सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी मन्दिर प्रबन्धन की रहेगी।

सर्वार्थ सिद्धि व अमृत सिद्धि योग में घटस्थापना
नवरात्र पर सर्वार्थ सिद्धि व अमृत सिद्धि योग ने घट स्थापना की जाएगी। इस बार मां दुर्गा का अश्व पर आगमन होगा और प्रस्थान मानव के कंधे पर होगा। घट स्थापना का शुभ मुहूर्त उदया तिथि में सूर्योदय 5:43 से सुबह 8: 46 बजे तक है।
चौघड़िया मुहूर्त सुबह 4: 36 बजे से सुबह 6:04 बजे तक

अभीजीत मुहूर्त सुबह 11: 36 बजे से दोपहर 12:24 बजे तक

घटस्थापना के लिए पूजन सामग्री
घटस्थापना के लिए कलश, सात तरह के अनाज, पवित्र स्थान की मिट्टी, गंगाजल, कलावा, आम के पत्ते, नारियल, सुपारी, अक्षत, फूल, फूलमाला, लाल कपड़ा, मिठाई, सिंदूर, दूर्वा, कपूर, हल्दी, घी, दूध आदि वस्तुएं जरूरी हैं।

संक्रांति का पुण्यकाल बुधवार को
ज्योतिषाचार्य पंडित अवध नारायण द्विवेदी के अनुसार 14 अप्रैल, बुधवार को भोर में 4:40 बजे सूर्य मेष राशि में प्रवेश करेंगे। इसलिए संक्रांति काल बुधवार को होगा। इसे सतू संक्रांति भी कहते हैं। इस दिन गंगा स्नान के साथ घड़े, पंखे और सत्तू का दान देना शुभ होता है।

सात्विक आहार, विहार, व्यवहार से बढ़ेगी रोग प्रतिरोधक क्षमता
नवरात्र में हवन, पूजन के साथ व्रत, उपवास का विशिष्ट महत्व है। इस दौरान संयमित जीवन शैली  रोग प्रतिरोधक क्षमता की वृद्धि में भी सहायक होगा। वरिष्ठ आयुर्वेद व योग चिकित्सक डॉ. टीएन पांडेय ने बताया कि वासंतिक नवरात्र ऋतु परिवर्तन का संधिकाल होता है। इस दौरान विषाणु जनित बीमारियों का प्रजनन अधिक होता है। नवरात्र में व्रत रहने से आत्मिक, शारीरिक और मानसिक शक्ति मिलती है। व्रत में तामसिक चीजों का त्याग कर देते हैं। आदि शक्ति के निमित्त भोजन त्याग की भावना आत्मबल प्रदान करती है। सुपाच्य आहार, विहार, व्यवहार और विचार से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

जानिए कैसे करें कलश स्थापना के बाद चौकी की स्थापना-

1. सबसे पहले एक लकड़ी की चौकी को गंगाजल या स्वच्छ जल से धोकर पवित्र कर लें।
2. अब इसे साफ कपड़े से पोछकर लाल कपड़ा बिछाएं।
3. चौकी के दाएं ओर कलश रखें।
4. चौकी पर मां दुर्गा की फोटो या प्रतिमा स्थापित करें।
5. माता रानी को लाल रंग की चुनरी ओढ़ाएं।
6. धूप-दीपक आदि जलाकर मां दुर्गा की पूजा करें।
7. नौ दिनों तक जलने वाली अखंड ज्योत माता रानी के सामने जलाएं।
8. देवी मां को तिलक लगाएं।
9. मां दुर्गा को चूड़ी, वस्त्र, सिंदूर, कुमकुम, पुष्प, हल्दी, रोली, सुहान का सामान अर्पित करें।
10. मां दु्र्गा को इत्र, फल और मिठाई अर्पित करें।
11. अब दुर्गा सप्तशती के पाठ देवी मां के स्तोत्र, सहस्रनाम आदि का पाठ करें।
12. मां दुर्गा की आरती उतारें।
13. अब वेदी पर बोए अनाज पर जल छिड़कें।
14. नवरात्रि के नौ दिन तक मां दुर्गा की पूजा-अर्चना करें। जौ पात्र में जल का छिड़काव करते रहें।

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