कौरवों और पांडवों से जुड़ी तमाम घटनाओं का साक्षी हस्तिनापुर है इस मौसम में घूमने के लिए बेहतरीन

ऐतिहासिक और पौराणिक घटनाओं की एक धर्मधरा। यहां पग-पग पर महाभारतकालीन प्रसंग जीवंत हो उठते हैं। उसके साक्ष्य मिलते हैं। जनश्रुतियों, वेदों से लेकर वैज्ञानिक शोध-खोज तक में। हालांकि द्वापर से कलियुग की तमाम घटनाओं का गवाह यह इलाका समय के साथ काफी बदला भी है। आध्यात्मिक प्रवृत्ति के लोगों के लिए आज यहां तीन धर्म की त्रिवेणी बहती है तो प्रकृति प्रेमियों को सर्दियों में मेहमान पक्षियों का कलरव खींचता है। गर्मियों में सुकून देती सेंचुरी का विशाल क्षेत्र बाहें फैलाए स्वागत करता है।

कौरवों और पांडवों से जुड़ी तमाम घटनाओं का साक्षी हस्तिनापुर आज जैन धर्म का बड़ा केंद्र बन चुका है। दर्जनों धर्मशालाएं, मंदिर, ध्यान केंद्र आपको एक अलग आभास कराएंगे। गंगा नहर से ठीक पहले बायीं ओर में वृहद वन्य क्षेत्र जंगल के रोमांच को बढ़ाता है तो नहर पार करते ही दाहिने हाथ पर पुराने टीलों की परतें सभ्यताओं को समेटे दिखती हैं। आप पाएंगे कि इतिहास के पन्नों से भी ज्यादा कहानियां इन परतों में मिल जाएंगी।

स्थानीय लोगों की मुख्य आजीविका खेती-बाड़ी है। मेहनतकश किसान, खेतों में हाथ बंटाती महिलाएं और उनका सादगी भरा स्वभाव आपको इस इलाके में अपरिचित नहीं रहने देगा। बड़ी संख्या में यहां बाहर से आकर बसे बंगाली और पंजाबी समाज के लोग भी मिलेंगे। और हां, पूरे पश्चिमी उप्र में मछली का बंगाली स्वाद भी हस्तिनापुर के छोटे से छोटे ढाबों पर भी मिल जाएगा। कुल मिलाकर घुमक्कड़ी के लिए आदर्श व्यवस्था।

हस्तिनापुर की पहचान है जंबूद्वीप

जैन धर्म के कुल 24 तीर्थंकरों में से 16वें, 17वें व 18वें तीर्थंकर शांतिनाथ, कुंथुनाथ व अरहनाथ का जन्म इसी पावन धरती पर हुआ था। बायीं ओर बड़ा जैन मंदिर है। पास में ही श्री पाश्‌र्र्वनाथ मंदिर, श्री नंदीश्र्वर द्वीप, अरहनाथ मंदिर, नेमीनाथ मंदिर, आदिनाथ जिनालय, तीन मूर्ति मंदिर, समवशरण आदि की श्रृंखला मिलेगी। यहां से आगे चलेंगे तो कैलाश पर्वत मंदिर है। यह अपने आप में पर्यटन का एक बड़ा केंद्र है। इसमें भूत, वर्तमान व भविष्य काल की तीन चौबीसी, 72 मंदिर व 51 फीट वाले शिखर युक्त मंदिर में सवा ग्यारह फीट की भगवान आदिनाथ की पद्मासन प्रतिमा विराजमान है। 

पंज प्यारे भाई धर्म सिंह का जन्म स्थल

हस्तिनापुर से लगभग 2.5 किमी की दूरी पर ही सैफपुर गांव में सिखों के पंज प्यारे भाई धर्मसिंह का गुरुद्वारा भी स्थित है। यह पंज प्यारे भाई धर्म सिंह का जन्म स्थान है। दूरदराज से श्रद्धालु यहां पहुंचकर सिखों की बहादुरी के इतिहास से रूबरू होते हैं। गुरुद्वारे में शीश नवाने से पूर्व श्रद्धालु पवित्र सरोवर में स्नान करते हैं। यात्रियों के लिए 24 घंटे लंगर व ठहरने की सुविधा उपलब्ध है। गुरुद्वारा साहिब में प्रत्येक अमावस्या को जोड़ मेला आयोजित होता है। बताते चलें कि भाई धर्म सिंह का जन्म संवत 1724 को सैफपुर गांव के संतराम के घर साभों की कोख से हुआ। वे 1735 में कलगीधर जी की शरण में आए और 32 वर्ष की उम्र में बैसाखी वाले दिन शीश भेंट कर क्षेत्र का नाम रोशन कर दिया। संवत 1795 में गुरुद्वारा नांदेड़ साहिब महाराष्ट्र में उनका देहांत हुआ।

कैसे और कब जाएं

नजदीकी हवाई अड्डा दिल्ली है। आप यहां से टैक्सी या राज्य बस सेवा से आसानी से पहुंच सकते हैं। नजदीकी रेलवे स्टेशन मेरठ सिटी है। 

यहां हर मौसम में पर्यटकों की आवाजाही रहती है लेकिन बेहतर समय अक्टूबर से मार्च होता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button