शर्मनाक: 34 दिन में 106 नवजातों की मौत

दौरे पर आने वाले मंत्री के स्वागत में बिछाया ग्रीन कारपेट, हटाया

कोटा, कोटा (राजस्थान). जेके लोन सरकारी अस्पताल में हालात सुधरने का नाम नहीं ले रहे। शुक्रवार सुबह यहां एक और नवजात ने दम तोड़ दिया। जिस बच्ची की मौत हुई, उसका 15 दिन पहले ही जन्म हुआ था। माता-पिता उसका नाम भी नहीं रख पाए थे। अस्पताल में पिछले 34 दिन में 106 मौतें हो चुकी हैं। इसके बावजूद प्रशासन बेशर्म है।

जयपुर से 4 घंटे की दूरी होने के बावजूद प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा ने गुरुवार तक यहां का दौरा नहीं किया था। शुक्रवार को वे अस्पताल पहुंचे तो प्रशासन ने रातों-रात अस्पताल का कायाकल्प कर दिया। सभी वार्ड में सफाई और पुताई हो गई। बेड पर नई चादरें बिछा दी गईं।

मंत्री के स्वागत में ग्रीन कारपेट बिछा दिया गया। लेकिन जब किरकिरी हुई तो इसे हटा लिया। अस्पताल में सुबह 8 बजे ही सभी डॉक्टर अपने कमरों में पहुंच गए। मरीजों और उनके परिजन से कहा गया कि वे स्वास्थ्य मंत्री के सामने सबकुछ अच्छा ही बताएं। मंत्री की आवभगत के लिए अस्पताल के मेन गेट पर बिछाए गए ग्रीन कारपेट पर मरीजों और उनके परिजन ने आपत्ति जताई।

मरीजों का कहना था कि मंत्रीजी यहां किसी उद्घाटन समारोह में आ रहे हैं या अस्पताल की समस्याएं दूर करने? जिन मासूमों की मौत हुई, उनके परिजन बोले- जेके लोन अस्पताल में मंत्री के लिए ग्रीन कारपेट बिछाने से क्या बीत रही, हमसे पूछें। जेके लोन कोटा-बूंदी संसदीय क्षेत्र का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल है।

लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला इसी क्षेत्र से सांसद हैं। शुक्रवार सुबह जिस बच्ची की मौत हुई, उसकी दादी अनारा देवी ने बताया, ”बेटे ओम प्रकाश और बहू रेखा के घर 15 दिन पहले बेटी हुई थी। बच्ची का जन्म पास के गांव रूपाहेड़ा में ही हुआ था। तबीयत ठीक नहीं होने की वजह से उसे जेके लोन अस्पताल में रेफर किया गया था। बच्ची का ठीक से इलाज नहीं हुआ।

इस अस्पताल में न जाने कितने ही बच्चे मर गए। डॉक्टर फिर भी कहते रहे कि सही कर देंगे। फिर भी सही नहीं हुई। बीमारी के बारे में हम तो जानते नहीं। डॉक्टर ही जानता है।” जब भास्कर ने डॉक्टरों से इस बारे में पूछा तो उनका कहना था कि बच्ची प्री-मैच्योर थी।

जिला अस्पताल सहित अन्य अस्पतालों में सुविधाएं नहीं होने की वजह से मेडिकल कॉलेज के अस्पतालों (जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, कोटा, बीकानेर, अजमेर) में हर दिन औसतन 180 बच्चे रेफर होकर आते हैं। प्रदेश के एक करोड़ 72 लाख बच्चों के लिए 124 डॉक्टर्स की सख्त जरूरत है।

सरकारी अस्पताल संचालक मशीनों के खराब होने की जानकारी ई-उपकरण पोर्टल पर नहीं देते। वजह यह कि निजी लैब संचालकों से उनकी सांठगांठ होती है। कई सरकारी अस्पतालों में सुपर स्पेशलिटी का एक भी डॉक्टर नहीं है। किसी बच्चे को कार्डियो, न्यूरो और नेफ्रो सम्बन्धी बीमारी होती है तो उसके लिए इलाज संभव नहीं है।

विशेषज्ञों का दल राज्य सरकार के साथ मिलकर कोटा मेडिकल कॉलेज में मातृ, नवजात शिशु और बाल चिकित्सा देखभाल सेवाओं, क्लिनिकल प्रोटोकॉल, सेवाएं प्रदान करने, कर्मचारियों और उपकरणों की उपलब्धता की समीक्षा करेगा और कमियों के विश्लेषण के आधार पर संयुक्त कार्य योजना बनाएगा ताकि राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन और राज्य चिकित्सा शिक्षा विभाग के जरिए कोटा मेडिकल कॉलेज को वित्तीय सहायता प्रदान की जा सके।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button