स्वाद से लेकर सेहत तक की जरुरत को सदियों से पूरा करती आ रही है अजवाइन

अजवाइन एक ऐसा मसाला है जो लगभग हर भारतीय रसोईघर में उपस्थित तो रहता है लेकिन आमतौर पर अनदेखा ही रह जाता है। हालांकि जिसे बचपन में खाए गए अजवाइनी परतदार पराठों की याद हो वह भला अजवाइन को कैसे भुला सकता है? पराठे ही क्यों, समोसों के लिफाफों में भी अजवाइन के छींटे उनके रसास्वाद का आनंद दोगुना कर देते हैं। भरवां सब्जियों के मिश्रण में अजवाइन की भूमिका रहती है और कुछ व्यंजन ऐसे हैं जिनकी जान ही अजवाइन है। इनमें अजवाइनी सूखी दबी अरब सबसे खास है। मछली खाने वाले ही इसका महत्व समझते हैं जिसमें तरी वाली मछली या मछली के अजवाइनी टिक्के बेहद लोकप्रिय हैं।

सदियों से है जान-पहचान

अंग्रेजी में अजवाइन का नाम कैरम सीड और कैरवे सीड है। वनस्पतिशास्त्रियों के अनुसार, इसका जन्म फारस और पड़ोसी मध्य एशियाई भू-भाग में हुआ और वहीं से यह उत्तरी यूरोप और अन्यत्र फैला। खुदाई में मिले अवेशेषों से यह पता चलता है कि अजवाइन से हमारे पुरखे ईसा के जन्म से कई सदी पहले से परिचित थे। यह बीज प्रागैतिहासिक काल के अवशेषों में मिला है और पलिनी जैसे इतिहासकारों के लेखों से पता चलता है कि रोमन इसकी जड़ों का उपयोग सब्जी के रूप में भी करते थे।

रसोई से लेकर साहित्य तक

स्केंडिनीवियाई देशों में इसका इस्तेमाल प्रमुख मसाले के रुप में होता है चाहे वह बंदगोभी की पत्तियों का चटपटा सलाद हो या गौड़ा और मूनस्टर जैसी सख्त पनीर की भेलियां, इनमें नई जान छिड़कता है अजवाइन। सलाद और सूप में ही नहीं डबल रोटियों और केक-पेस्ट्री में भी इसका इस्तेमाल जरूरी माना जाता है। भूमध्य सागरीय खान-पान में अजवाइन नमकीन और मीठे व्यंजनों में समान रूप से उपयोगी समझा जाता है। पश्चिमी यूरोप के अन्य देशों में इसे खासतौर से बेकरी की चीजों में काम में लाया जाता है और कुछ हल्की मदिराओं को सुवासित और स्वादिष्ट बनाने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। पश्चिम में कहीं-कहीं अजवाइन को मतिमंद लोगों का सौंफ कहा गया और कहीं इसे नाम दिया गया चरागाहों का जीरा। शायद इस कारण जब यूरोप के लिए असली जीरा दुर्लभ था और आम आदमी की पहुंच से बाहर था तब अजवाइन को ही जीरे के नाम से खरीदा-बेचा जाता था। इसका उल्लेख शेक्सपियर के एक नाटक में भी मिलता है। इसमें एक पात्र विदूषक साथी से कहता है, ‘चलो मैं तुम्हें सालभर पहले बनाया एक व्यंजन खिलाता हूं जिसको मैंने अजवाइन से निखारा है!’

सेहत का खजाना

अजवाइन की गुणवत्ता पीढ़ी दर पीढ़ी बरती गई है। इसे पाचक समझा जाता है जो अजीर्ण और वायु विकार को दूर करती है। उत्तराखंड में इसे ज्वाड़ नाम से पहचाना जाता है और उदरशूल के लिए इसके कुछ बीज चबाना घरेलू नुस्खों में अभी तक प्रचलित रहा है। इस छोटे से बीज को सेहत का खजाना कहना गलत नहीं होगा। बच्चों की घुट्टी में भी इसका इस्तेमाल होता है और खांसी दूर करने वाली शरबती अंग्रेजी दवाइयों में थाइमॉल नामक तत्व अजवाइन से ही हासिल होता है

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