कोरोना कहर को सँभालने में जुटे वैज्ञानिक दिखी उम्मीद की किरण

कोरोना का कहर थामने में जुटे वैज्ञानिकों को एक उम्मीद की किरण नजर आई है। पता चला है कि कोरोना से गंभीर रूप से बीमार हो रहे लोगों में रोग प्रतिरोधक कोशिकाओं (इम्यून सेल या टी-सेल) की संख्या काफी कम हो जाती है।

ब्रिटेन के वैज्ञानिक इसका परीक्षण कर रहे हैं कि अगर टी-सेल की संख्या बढ़ा दी जाए तो क्या लोगों की जान बचाई जा सकती है। कई अन्य बीमारियों में यह उपाय काफी कारगर रहा है।

विशेषज्ञों के मुताबिक, जब भी शरीर पर किसी तरह के वायरस का हमला होता है तो उससे लड़ने और बीमारी को शरीर से बाहर निकाल फेंकने का काम ये टी-सेल ही करती हैं।

एक स्वस्थ शख्स के एक माइक्रोलीटर रक्त में आम तौर पर 2000 से 4800 टी-सेल होती हैं। इन्हें टी-लिम्फोसाइट्स भी कहा जाता है। वैज्ञानिकों ने टेस्ट में पाया कि कोरोना के मरीजों में इनकी संख्या 200 से 1000 तक पहुंच जाती है। इसीलिए उनकी हालत गंभीर होती जाती है।

टी-सेल की गिरती संख्या का मतलब है कि आदमी किसी न किसी संक्रमण की चपेट में है। कई अन्य बीमारियों में डॉक्टरों ने इसकी संख्या बढ़ाने के लिए इंटरल्यूकिन 7 नाम की दवा का प्रयोग किया है, जो काफी कारगर रहा है।

अब किंग्स कॉलेज लंदन के फ्रांसिस क्रिक इंस्टीट्यूट और गाएज एंड सेंट थॉमस हॉस्पिटल के वैज्ञानिक कोरोना मरीजों पर इस दवा का क्लिनिकल ट्रायल कर रहे हैं।

  • डॉक्टरों ने पाया कि आईसीयू में आने वाले 70% कोरोना पीड़ितों में टी-सेल की संख्या 4000 से घटकर 400 तक आ गई।
  • दो रिसर्च से पता चला कि उन लोगों को संक्रमण नहीं हुआ जिनमें टी-सेल की संख्या ज्यादा पाई गई।

क्रिक इंस्टीट्यूट के प्रोफेसर एड्रियन हेडे का कहना है कि कोरोना वायरस अलग तरह से हमारे शरीर के रोग प्रतिरोधक तंत्र पर हमला करता है। वह सीधे टी-सेल को ही खत्म करने लगता है। हम अगर मरीजों में टी-सेल की संख्या बढ़ाने में सफल रहे तो बड़ी उपलब्धि होगी।

कोलंबिया यूनिवर्सिटी के वायरोलॉजिस्ट एंजेला रासमुसेन कहते हैं कि यह काफी उत्साहजनक है। देखा गया है कि कोरोना के मरीज जैसे जैसे ठीक होते जाते हैं, उनमें टी-सेल की संख्या बढ़ती जाती है। इस परिणाम से वैक्सीन बनाने में काफी मदद मिल सकती है।

 

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