चीन से तनाव के बीच मोदी सरकार पर होगा रक्षा बजट में बढ़ोतरी का दबाव

नई दिल्ली: एलएसी पर कायम तनाव का असर इस बार रक्षा बजट पर भी साफ नजर आने की संभावना है। सेनाओं की तरफ से दोहरे फ्रंट के खतरों से निपटने और अगले दस सालों की तैयारियों के मद्देनजर ज्यादा बजट की जरूरत बताई गई है। इसके साथ ही पेंशन के बजट में भी बढ़ोतरी का सीधा असर भी रक्षा बजट में दिखेगा। पिछले साल के रक्षा बजट को देखें तो यह कुल 4.70 लाख करोड़ के करीब था। इसमें 1.33 करोड़ रुपए भूतपूर्व सैनिकों की पेंशन का शामिल है। जबकि आधुनिकीकरण के लिए 1.13 लाख करोड़ रखे गए थे, लेकिन तब भी रक्षा विशेषज्ञों ने भावी जरूरतों के मद्देनजर इस बजट को नाकाफी बताया था। इस साल रक्षा चुनौतियां बढ़ी हुई हैं।

पूर्वी लद्दाख में चीन के साथ खुले नए मोर्चे के कारण जहां तीनों सेनाओं की संचालनात्मक खर्च में भारी बढ़ोतरी हुई है, वहीं चीन और पाकिस्तान के दोनों मोर्चों पर अपनी आगे की तैयारियों को चुस्त-दुरुस्त रखने के लिए भी सेनाओं को अपने संसाधन बढ़ाने पड़ रहे हैं। इसलिए सेनाओं के संचालनात्मक बजट में भी काफी बढ़ोतरी होने लगी है। बदले रक्षा परिदृश्य में रक्षा क्षेत्र के लिए आवंटन बढ़ाना होगा। इसमें करीब एक लाख करोड़ रुपये तक की बढ़ोतरी की जरूरत का आकलन रक्षा महकमे की तरफ से किया गया है। हालांकि कोरोना के चलते सरकार के समक्ष भी आर्थिक चुनौतियां कम नहीं हैं। इसलिए सरकार को रक्षा क्षेत्र की जरूरतों और अन्य महकमों के बजट में तालमेल बिठाकर तर्कपूर्ण आवंटन करना होगा।

सूत्रों के अनुसार तीनों सेनाएं नए साल में अगले दस सालों की कार्य योजनाओं को भी अंतिम रूप दे रही हैं। ऐसे में दस सालों की प्लानिंग की शुरुआत के लिए भी कई बड़ी परियोजनाओं पर कार्य शुरू किया जाना है। खासकर युद्धक सामग्री के अधिग्रहण को लेकर अहम फैसले होने हैं। इसमें विमानों, पनडुब्बियों तथा सेना के लिए रक्षा उपकरणों की खरीद शामिल है। इसलिए आधुनिकीकरण के लिए भी ज्यादा बजट की दरकार है।

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