बजट 2020: अर्थव्यवस्था के बूस्ट देने के लिए सरकार के आगे होंगी ये 5 बड़ी बाधाएं

वित्त वर्ष 2020-21 का बजट 1 फरवरी को पेश किया जाएगा। यह बजट ऐसे समय में पेश होगा जब सरकार अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर कई तरह की चुनौतियों से जूझ रही है।

गौरतलब है कि पिछले एक साल में ज्यादातर आंकड़े नकारात्मक ही आए हैं। जीडीपी की रफ्तार लगातार छह तिमाहियों से सुस्त हुई है। वहीं, महंगाई साढ़े पांच साल के उच्चतर स्तर पर पहुंच गई है। ऐसे में आर्थिक क्षेत्र के विशेषज्ञों का मानना है कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और केंद्र सरकार के लिए यह एक दशक का सबसे चुनौतीपूर्ण बजट होने वाला है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के सामने सुस्त पड़ती अर्थव्यवस्था की रफ्तार तेज करने के साथ आम आदमी से लेकर उद्योग जगत को राहत देने की अहम चुनौती होगी। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के लिए हकीकत और उम्मीदों में तालमेल बनाना मुश्किल होगा।

बाजार में जल्द से मांग बढ़ाना 
आर्थिक सुस्ती के बीच बाजार में मांग बढ़ाना बड़ी चुनौती है। अब यह और कठिन हो गया है क्योंकि दिसंबर महीने में खुदरा महंगाई दर साढ़े पांच साल के उच्चतम स्तर 7.35 फीसदी पर पहुंच गई है। उपभोक्ता महंगाई दर बढ़ने से केंद्रीय बैंक के लिए रेपो रेट घटाना मुश्किल होगा।

घटता प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर संग्रह
इस वित्त वर्ष के लिए कर संग्रह बजट में तय लक्ष्य से करीब 2 लाख करोड़ रुपये कम रह सकता है। वित्त वर्ष 2019-20 के बजट में 24.59 लाख करोड़ रुपये के कर संग्रह का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन नवंबर तक यह महज 20.8 लाख करोड़ हो पाया है। इसी वजह से सरकार के हाथ बंधे होंगे। अगर वित्त मंत्री आयकर सीमा बढ़ाती हैं तो राजकोषीय घाटा बढ़ेगा।

बाजार में जल्द से मांग बढ़ाना
आर्थिक सुस्ती के चलते कर संग्रह अपने लक्ष्य से पीछे चल रहा है। वहीं बाजार में मांग बढ़ाने के लिए सरकार के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर और दूसरे क्षेत्र पर आवंटन बढ़ाना जरूरी है। लेकिन, कर संग्रह घटने से सरकार की आय प्रभावित हुई है। ऐसे में खर्च भी ज्यादा बढ़ाना संभव नहीं लग रहा।

बढ़ता राजकोषीय घाटा
वित्त वर्ष 2019-20 के बजट में सरकार ने राजकोषीय घाटा जीडीपी के 3.3 फीसदी तक रखने का लक्ष्य रखा था, लेकिन इस लक्ष्य को हासिल करना अब काफी मुश्किल है। नवंबर 2019 तक राजकोषीय घाटा लक्ष्य से 14.8 फीसदी ज्यादा तक रहा।

सरकारी खर्च बढ़ाने पर जोर
आर्थिक सुस्ती के चलते कर संग्रह अपने लक्ष्य से पीछे चल रहा है। वहीं बाजार में मांग बढ़ाने के लिए सरकार के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर और दूसरे क्षेत्र पर आवंटन बढ़ाना जरूरी है। लेकिन, कर संग्रह घटने से सरकार की आय प्रभावित हुई है। ऐसे में खर्च भी ज्यादा बढ़ाना संभव नहीं लग रहा। 

आयकर सीमा में बढ़ोतरी
कंपनी कर में कटौती के बाद आयकर दाता पांच लाख रुपये की आय को करमुक्त करने की मांग कर रहे हैं। अगर सरकार इस दिशा में रियायत देती है तो सरकारी खजाने पर बड़ा बोझ पड़ेगा। पहले से ही आर्थिक सुस्ती के कारण कर संग्रह घटने के बीच छूट सीमा बढ़ाना मुश्किल होगा।

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