भविष्य के लक्ष्यों के बारे में सोचे खर्च और कर्ज से बचे, बना के चले वित्तीय योजना
हम समृद्ध होना चाहते हैं, धनी बनना चाहते हैं और सुख के साथ जीवन बिताना चाहते हैं। दूसरी तरफ, हम नौकरी शुरू करते हैं और पहली सैलरी के साथ ही हर उन इच्छाओं को पूरी करने में लग जाते हैं जो पैसों के अभाव में नहीं कर पाए थे। यह सिलसिला चलता रहता है। कभी महंगे गैजेट्स, कभी कीमती कपड़े और जूते तो कभी ड्रीम डेस्टिनेशन पर घूमने जाना। नौकरी शुरू करने के कुछ समय बाद क्रेडिट कार्ड भी आम तौर पर मिल जाता है। इसके बाद तो खर्च पर काबू ही नहीं रहता। क्रेडिट कार्ड के बिल भरने और जरूरी कामों में ही सैलरी समाप्त हो जाती है। विडंबना यह है कि हम बिना अपने भविष्य के लक्ष्यों के बारे में सोचे खर्च और कर्ज के दलदल में फंसते चले जाते हैं।
क्या आपने कभी सोचा है कि किसी भी इंसान का जीवन उसके सपनों, जिम्मेदारियों और आकांक्षाओं के बीच घूमता है। इन सबके लिए धन की जरूरत होती है। हर इंसान के जीवन के कुछ लक्ष्य होते हैं जैसे घर खरीदना, बच्चों की पढ़ाई और उनकी शादी, आरामदेह रिटायरमेंट आदि। जरूरतें तो ढेर सारी होती हैं और संसाधन कम। इन सबके बीच वित्तीय लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए आपको वित्तीय योजना यानी Financial Planning की जरूरत होती है। आपकी फाइनेंशियल प्लानिंग जितनी मजबूत होगी, आपका भविष्य भी उतना ही खुशहाल रहेगा, आप आर्थिक तौर पर समृद्ध रहेंगे।
क्या है Financial Planning?
फाइनेंशियल प्लानिंग की प्रक्रिया काफी सरल है। सेबी रजिस्टर्ड इन्वेस्टमेंट एडवाइजर और सर्टिफायड फाइनेंशियल प्लानर जितेंद्र सोलंकी कहते हैं, ‘फाइनेंशियल प्लानिंग की पूरी प्रक्रिया में आपको पहले अपने लक्ष्यों की पहचान करने के साथ-साथ उनकी प्राथमिकता तय करनी होती है। फिर मौजूदा आर्थिक स्थिति का विश्लेषण करते हुए अपने सीमित संसाधनों का उपयोग वित्तीय लक्ष्यों को हासिल करने में किया जाता है। वित्तीय लक्ष्यों में बदलाव आप अपने नकदी प्रवाह के हिसाब से आवश्यकता पड़ने पर कर सकते हैं। समय-समय पर इसकी समीक्षा करनी भी जरूरी है।’ अब बात करते हैं कि फाइनेंशियल प्लानिंग की शुरुआत कैसे करते हैं।
बजट बनाएं
फाइनेंशियल प्लानिंग में सबसे महत्वपूर्ण यह देखना होता है कि कहां से कितने पैसे आ रहे हैं और कहां जा रहे हैं। सोलंकी कहते हैं कि कमाई शुरू करने के साथ ही बजट बनाकर चलना चाहिए। इसमें आपके सभी खर्च लिखे जाने चाहिए और यह भी प्रावधान हो कि किसी अप्रत्याशित खर्च के दौरान उसकी पूर्ति अपने नकदी प्रवाह में से कैसे करेंगे।
इमरजेंसी फंड
भविष्य में होने वाली किसी अप्रत्याशित खर्च को पूरा करने के लिए एक इमरजेंसी फंड बनाकर चलना चाहिए। आम तौर पर लोग आपातकालीन परिस्थितियों के लिए अलग फंड नहीं बनाते। इमरजेंसी आने पर ऐसे में अपने इन्वेस्टमेंट से उन्हें पैसे निकालने पड़ते हैं। भविष्य में होने वाले किसी अप्रत्याशित खर्च के लिए पर्याप्त फंड अलग से रखें। अब सवाल उठता है कि इमरजेंसी फंड के तौर पर कितने पैसे रखे जाएं? ऑप्टिमा मनी मैनेजर्स के सीईओ और सर्टिफायड फाइनेंशियल प्लानर पंकज मठपाल कहते हैं कि इमरजेंसी फंड किसी व्यक्ति के मासिक खर्च का कम से कम 6 गुना होना चाहिए। उनका कहना है कि दो महीने के बराबर नकद और बाकी की रकम फिक्स्ड डिपॉजिट और शॉर्ट टर्म फंडों में रखी जा सकती है। नौकरी जाने या अन्य विपरीत परिस्थितियों में यह फंड काम आता है और आपका निवेश भी प्रभावित नहीं होता है।
जीवन बीमा
बीमा आपके परिवार के लोगों/आश्रितों को एक्सीडेंट या मृत्यु जैसी अप्रत्याशित हालातों में आय का नुकसान होने पर उसकी भरपाई आर्थिक रूप से करता है। आप अपनी बीमा जरूरतों का मूल्यांकन कीजिए और उसी के अनुरूप पर्याप्त लाइफ इंश्योरेंस कवर लेकर रखिए। आर्क फाइनेंशियल प्लानर्स के सर्टिफायड फाइनेंशियल प्लानर हेमंत बेनीवाल कहते हैं कि आम तौर पर जीवन बीमा किसी व्यक्ति की सालाना आय का 10-12 गुना होना चाहिए। हालांकि, यह किसी व्यक्ति की आय, उम्र और उसकी देनदारियों पर निर्भर करता है। लाइफ इंश्योरेंस का सबसे सस्ता विकल्प टर्म इंश्योरेंस है जो आप घर बैठे ऑनलाइन भी ले सकते हैं।
हेल्थ इंश्योरेंस
आज के जमाने में एक अच्छे अस्पताल में छोटी बीमारी का इलाज कराना भी आपकी वित्तीय सेहत बिगाड़ सकता है। क्योंकि दिन प्रतिदिन इलाज का खर्च बढ़ता ही जा रहा है। परिवार का एक सदस्य भी बीमार पड़ जाए तो कभी-कभार पूरा निवेश या फिर उसका ज्यादातर हिस्सा खर्च कर देने की नौबत आ जाती है। इसलिए, बेहतर यह होगा कि आप अपनी आय और जिस शहर में रहते हैं, उसके आधार पर पर्याप्त सम एश्योर्ड का हेल्थ इंश्योरेंस ले लें।
इन्वेस्टमेंट
आपके वित्तीय लक्ष्यों की प्राप्ति में निवेश की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है। निवेश लक्ष्य से जुड़ा होना चाहिए। मठपाल कहते हैं कि हो सकता है कि आप 1 साल बाद कार खरीदना चाहते हों, 5 साल बाद घर या फिर अपने बच्चों की पढ़ाई या शादी के लिए बचत करना चाहते हों या रिटायरमेंट के बाद की जिंदगी सुखमय बनाने के लिए निवेश करना चाहते हों। आपका निवेश ऐसे ही लक्ष्यों से जुड़ा होना चाहिए। अगर लक्ष्य दो साल बाद है तो डेट में निवेश करें। 5 साल तक का है तो हाइब्रिड म्युचुअल फंडों में निवेश करें यानी 40-50 फीसद इक्विटी में और शेष डेट में। 5-10 साल तक के लिए आप इक्विटी में 60-70 फीसद तक का निवेश कर सकते हैं। वहीं, अगर आपका लक्ष्य 10 साल बाद का है तो इक्विटी में 80-90 फीसद तक का निवेश कर सकते हैं। जब तक लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता तब तक किसी भी लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट को हाथ न लगाएं।
एस्टेट प्लानिंग
आपके वित्तीय लक्ष्य तभी पूरे होंगे जब आपकी अर्जित संपत्ति उचित उत्तराधिकारी के पास जाएगी। भारत में बड़े परिवारों के सदस्यों में अपना हिस्सा पाने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ता है। अगर आपने उत्तराधिकारी की योजना नहीं बनाई है तो आपके जीवनसाथी व बच्चों को तकलीफ उठानी पड़ सकती है। लिहाजा अपनी संपत्ति को अपने उत्तराधिकारियों में उचित वितरण की योजना बनाइए, एक वसीयत तैयार कीजिए और अपने एस्टेट को किसी प्राकृतिक आपदा से वित्तीय सुरक्षा देने के लिए उचित रकम का बीमा भी करवा डालिए।
टैक्स प्लानिंग
अपनी टैक्स प्लानिंग प्रत्येक वित्त वर्ष की शुरूआत से ही आरंभ करें और इस मद में कुछ रकम का निवेश करते रहें। अगर आपने टैक्सेशन के प्रावधानों को ध्यान में रखा तो आप आखिरी क्षण में कोई गलती नहीं करेंगे और आपका नकदी प्रवाह पूरे साल के दौरान एकसमान बना रह सकता है। टैक्स सेविंग के लिए धारा 80सी के अलावा उपलब्ध अन्य विकल्पों की भी समीक्षा कीजिए।
समीक्षा
फाइनेंशियल प्लानिंग के एक बार क्रियान्वयन के बाद भी यह जरूरी है कि आप अपने पोर्टफोलियो के प्रदर्शन पर निगाह रखें। दरअसल ज्यादातर लोग अपनी योजना के साथ जुड़े न रह कर गलतियां करते हैं जिसका खामियाजा उन्हें नुकसान के रूप में भुगतना पड़ता है।
ध्यान रखें कि फाइनेंशियल प्लान तैयार करना तो एक शुरूआत भर है। सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि उस योजना पर पूरे अनुशासित तरीके से अमल किया जाए। यदि आप इसमें धैर्य के साथ बने रहेंगे, अनुशासित रहेंगे तो आप अपने और अपने परिवार को एक सुनहरा भविष्य दे सकते हैं।