गलत तरीके से सांस लेना बन सकता है गर्दन-पीठ और कंधे के दर्द की वजह

सांस लेने का तरीका भी हमारे सेहत और बीमार होने का संकेत देता है। बचपन से हम सभी को स‍िखाया जाता रहा है क‍ि हमें हमेशा नाक से ही सांस लेना चाहि‍ए। हालांक‍ि, कुछ लोग ऐसे भी हैं जो मुंह से सांस लेते हैं। सांस लेना तो नेचर की देन है। लेक‍िन आपको बता दें क‍ि आपके गलत तरह से सांस लेने की आदत से आपको तनाव, शरीर में दर्द जैसी द‍िक्‍कतों का सामना करना पड़ सकता है।

आपको बता दें क‍ि हम कैसे सांस लेते हैं, इसका असर सिर्फ हमारे शरीर को ऑक्सीजन देने तक सीमित नहीं है। ये हमारी मूवमेंट क्वॉलिटी, पॉश्चर और दर्द पर भी असर डालता है। अक्सर हम सांस लेने को सिर्फ ज‍िंदा रहने के ल‍िए मानते ह‍ैं, लेक‍िन आपकी सांस लेने का तरीका बताता है क‍ि आपका शरीर कितनी अच्छी तरह से काम कर रहा है।

गलत तरीके से सांस लेने से बढ़ सकता है तनाव
अगर आप हल्का और तेजी से सांस लेते हैं, तो ये आपके शरीर के संतुलन, मूवमेंट और मसल्‍स में तनाव बढ़ सकता है। आज का हमारा लेख भी इसी वि‍षय पर है। हम आपको बताएंगे क‍ि गलत‍ तरीके से सांस लेने पर आपको कौन-काैन सी द‍िक्‍कतें हो सकती हैं। आइए जानते हैं व‍िस्‍तार से-

कम हो जाता है डायफ्राम का इस्‍तेमाल
जब भी हम तनाव में होते हैं, तो हमारा शरीर fight-or-flight मोड में चला जाता है। इससे हमारी सांसें तेज और सीने के ऊपरी हिस्से से ली जाने लगती हैं। धीरे-धीरे ये तरीका आदत बन जाता है। इस तरह से सांस लेने की आदत से डायफ्राम ( जो सांस लेने की मांसपेशी हाेती है) का इस्‍तेमाल कम हो जाता है। ऐसे में गले और कंधे के मसल्‍स पर ज्‍यादा दबाव पड़ता है।

ये समस्‍याएं भी बढ़ती हैं
इस कारण पॉश्चर तो ब‍ि‍गड़ता ही है। साथ ही रीढ़ की हड्डी भी ड‍िस्‍बैलेंस हो जाती है। इससे गर्दन के झुकने, कंधों में अकड़न और पीठ दर्द की समस्‍या बढ़ जाती है। इससे ये बात तो साफ है क‍ि आपके सांस लेने का तरीका भी आपके पॉश्चर पर असर डालता है। जब तक सांस लेने के तरीके को नहीं सुधारा जाएगा, स्ट्रेचिंग या एक्सरसाइज भी पूरी तरह से असर नहीं करेगी।

कैसे ध्‍यान दें?
सबसे पहले तो आप सीधा लेट जाइए, घुटनों को मोड़कर पैर जमीन पर टिकाएं और अपने हाथ को नीचे की पसलियों पर रखें। अब धीरे-धीरे सांस लेना और छोड़ना शुरू करें। अगर आपको सांस लेते समय गर्दन या कंधों में कोई हलचल महसूस होती है, या पसलियों में कोई खास मूवमेंट नहीं होती है तो आप shallow breathing कर रहे होते हैं।

लंबा सांस छोड़ना क्यों जरूरी?
Deep Breathing एक अच्‍छा तरीका हो सकता है। लेक‍िन असली बदलाव तभी आता है जब आप धीरे-धीरे और पूरी तरह से सांस लेते और छोड़ते हैं। इससे हमारा पैरासिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम एक्टिव हो जाता है, जो शरीर को शांत करता है और रिकवरी में मदद करता है। जब हम धीरे-धीरे सांस छोड़ते हैं, तो डायफ्राम की पोजीशन रीसेट होती है और अगली सांस बेहतर होती है।

इन तरीकों से सुधरती है सांस की क्‍वाल‍िटी
सांस को लंबे समय तक रोकने और धीरे-धीरे छोड़ने से कार्बन डाइऑक्साइड सहन करने की क्षमता भी बढ़ती है, जिससे सांस की क्‍वाल‍िटी में सुधार आता है और तनाव को मैनेज करना भी सीख पाते हैं। सांस को बेहतर बनाने के ल‍िए आप कुछ अभ्‍यास कर सकते हैं।

एक्सटेंडेड एक्सहेल टेक्‍न‍िक
इसको करने के ल‍िए सबसो पहले आप आराम से बैठ जाएं और अपने हाथ नीचे की पसलियों पर रख लें। अब चार सेकंड तक नाक से सांस लें। 8 सेकंड तक नाक या मुंह से धीरे-धीरे सांस छोड़ें। इसके बाद दो सेकंड का छोटा सा ब्रेक लें। ये प्रक्र‍िया आपको कम से कम 10 से 12 बार दोहराना है।

वर्कआउट से पहले सांसों पर कैसे दें ध्‍यान
वर्कआउट से पहले सांस पर ध्यान देना सही रहेगा। इससे शरीर की तैयारी बेहतर होगी।
इसके अलावा एनर्जी वाली एक्सरसाइज करते समय सांस छोड़ते हुए जोर लगाएं।
स्ट्रेचिंग या योग करते समय सांस को गाइड की तरह इस्तेमाल करें।
हल्के कार्डियो के दौरान नाक से सांस लेना बेहतर होता है।

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