Forest Drone Force वन संपदा एवं वन्यजीवों की सुरक्षा में निभाएंगी अहम भूमिका

उत्तराखंड 71 प्रतिशत से ज्यादा वनक्षेत्र वाला राज्य है। स्वाभाविक रूप से इसी अनुपात में उत्तराखंड वन्यजीवों के लिहाज से भी समृद्ध है। अब सरकार राज्य के जंगलों और वन्यजीवों की सुरक्षा के मद्देनजर इन पर नजर रखने के लिए नई व्यवस्था अमल में लाई है। यह है फारेस्ट ड्रोन फोर्स। इस आधुनिक तकनीक के जरिये विभाग सभी वन प्रभागों की निगहबानी तो करेगा ही, साथ ही वहां हो रही किसी तरह की गतिविधि भी नजरों से छिपी नहीं रह पाएगी।

जंगलों में पौधारोपण की निरंतर निगरानी होगी

सरकारी बजट ठिकाने लगाने की प्रवृत्ति पर इस व्यवस्था से अंकुश लगाया जा सकता है। पौधारोपण की कागजी कार्रवाई इससे आसानी से पकड़ में आ जाएगी, क्योंकि नई व्यवस्था में जंगलों में पौधारोपण की निरंतर निगरानी होगी। पौधारोपण के मामलों में ही गड़बड़झाले की बातें पूर्व में सामने आती रही हैं। यही नहीं, रोपित पौधों का सरवाइवल रेट भी बहुत अच्छा नहीं है। खासकर पर्वतीय क्षेत्रों में। ऐसे में ड्रोन से इस पर निगरानी रखी जा सकेगी। इसके अलावा विषम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण जहां विभाग के कर्मचारी स्वयं नहीं पहुंच पाते, उन वन क्षेत्रों में क्या हो रहा है, इसकी जानकारी ड्रोन फोर्स विभाग को उपलब्ध कराएगी। वनों में तस्करों की सक्रियता को देखते हुए वन संपदा और वन्यजीव, दोनों की सुरक्षा सरकार के लिए खासी चुनौतीपूर्ण रहती है।

पेड़ों का अवैध कटान पर रहेगी नजर

अब अगर ड्रोन आसमान से नजर रखेगा तो साफ पता चल जाएगा कि किन क्षेत्रों में पेड़ों का अवैध कटान हो रहा है और कहां अवैध खनन करने वाले सक्रिय हैं। यही नहीं, गर्मियों में जंगलों में आग हर साल वन महकमे के लिए परेशानी का सबब बनती है। तमाम कोशिशों के बावजूद जब विभाग इस पर काबू पाने का दावा करता है, तब तक करोड़ों की वन संपदा आग की भेंट चढ़ चुकी होती है। इस दृष्टिकोण से ड्रोन की भूमिका जंगल की आग पर समय रहते काबू पाने में महत्वपूर्ण रहेगी। वन्यजीवों की गणना में ड्रोन तकनीकी बड़ी मददगार साबित होगी। जंगली जानवरों और प्रवासी र्पंरदों पर नजर रखने में भी ड्रोन उपयोगी साबित होंगे, इसमें कोई शक नहीं।

मगरमच्छ एवं घड़ियालों की गणना में ड्रोन का उपयोग

राज्य में पहली बार मगरमच्छ एवं घड़ियालों की गणना में ड्रोन के उपयोग का खाका खींच लिया गया है और यह गणना इस माह के आखिरी हफ्ते से प्रस्तावित है। उत्तराखंड ड्रोन फोर्स के समन्वयक डॉ.धकाते के अनुसार नदियों, जलाशयों एवं बांधों के क्षेत्र में पानी के बहाव के हिसाब से ड्रोन फिक्स किए जाएंगे। इनकी दूरी तय होगी और इनसे एक ही समय में फोटो एवं वीडियोग्राफी होगी। फिर इनका विश्लेषण कर मगरमच्छ एवं घड़ियालों की संख्या निकाली जाएगी। उत्तराखंड में नेपाल बॉर्डर से लेकर हरिद्वार तक 6370 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में कितने मगरमच्छ और घड़ियाल हैं, इसकी सही तस्वीर अब सामने आएगी।

ड्रोन फोर्स वन एवं वन्यजीव सुरक्षा में अहम भूमिका

नेपाल सीमा पर शारदा नदी से लेकर हरिद्वार तक वन विभाग के चार वृत्तों पश्चिमी, शिवालिक, राजाजी एवं कार्बेट टाइगर रिजर्व में इनकी अच्छी-खासी संख्या है। वर्ष 2016 में पायलट प्रोजेक्ट के तहत सिर्फ पश्चिमी वृत्त में मगरमच्छों की गणना हुई, जिसमें ड्रोन का प्रयोग किया गया। यहां इनकी संख्या 65 निकली थी, लेकिन राज्य के अन्य क्षेत्रों में मगरमच्छ एवं घड़ियाल की गणना नहीं हो पाई। ऐसे में प्रदेश में इनकी वास्तविक संख्या को लेकर तस्वीर साफ नहीं हुई। कुल मिलाकर बदली परिस्थितियों में ड्रोन फोर्स वन एवं वन्यजीव सुरक्षा में अहम भूमिका निभाने जा रही है। उम्मीद की जानी चाहिए कि ड्रोन फोर्स के जरिये मिले परिणामों के आधार पर सरकार और महकमा वन एवं वन्यजीव सुरक्षा के लिए प्रभावी कदम उठाएंगे।

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