SC में याचिका, जजों की संख्या दोगुनी करने की मांग
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर की गई है जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों को उच्च न्यायालयों और अधीनस्थ न्यायालयों में न्यायाधीशों की संख्या को दोगुना करने के लिए उचित कदम उठाने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है। जनहित याचिका में शीर्ष अदालत से आग्रह किया गया कि वह तीन साल के भीतर मामलों का फैसला करने और 2023 तक बैकलॉग के उल्लंघन और निपटान के लिए सभी न्यायालयों में न्यायिक चार्टर को लागू करे।
अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने दायर याचिका में कहा, ’25 अक्टूबर, 2009 को लिए संकल्प के तहत तीन साल के भीतर तहसीलदार, एसडीएम, एडीएम, सीओ, एसओसी और डीडीसी के समक्ष लंबित मामलों सहित मामलों को तय करने के लिए न्यायिक चार्टर का उचित कार्यान्वयन होना था।’ उन्होंने आगे कहा कि वैकल्पिक रूप से, संविधान का संरक्षक और मौलिक अधिकारों का रक्षक होने के नाते, न्यायालय को केंद्र और राज्यों को इसे लागू करने का निर्देश देने की कृपा करनी होगी। विधि आयोग की सिफारिशें रिपोर्ट सं 245 और तीन साल की समय सीमा में बैकलॉग के विघटन और निपटान के लिए अन्य उचित कदम उठाएं।
याचिका में कहा गया, 25 अक्टूबर 2009 को संबंधित कार्रवाई के बाद केंद्र ने मामलों की पेंडेंसी को 15 साल से घटाकर तीन साल करने का वादा किया था, लेकिन केंद्र ने रिपोर्ट में भारतीय विधि आयोग द्वारा प्रस्तावित सिफारिशों को लागू करने के लिए कुछ भी नहीं किया। बैकलॉग पर याचिका में कहा गया, ‘शीघ्र न्याय का अधिकार अनुच्छेद 2 का एक अभिन्न अंग है। हालांकि, केंद्र और राज्यों ने जानबूझकर शीघ्र न्याय के महत्व की उपेक्षा की है। उन्होंने विशाल बैकलॉग को साफ़ करने के लिए आवश्यक न्यायिक अवसंरचना प्रदान नहीं की है।’
याचिका में कहा गया, तहसीलदार, एसडीएम, एडीएम, सीओ, एसओसी, डीडीसी के सामने 10 साल से ज्यादा पुराने मुकदमे लंबित हैं। उच्च न्यायालयों में लगभग 5 मिलियन (50 लाख) मामले लंबित हैं। उनमें से, लगभग 10 लाख मामल 10 से अधिक वर्षों से लंबित हैं और 2 लाख मामले 20 से अधिक वर्षों के लिए और तीन दशकों से भी लगभग 45,000 मामले लंबित हैं। इन नंबरों से पता चलता है कि हमारे देश की न्याय व्यवस्था दिन-प्रतिदिन धीमी होती जा रही है। इसमें एक उदाहरण का हवाला दिया जहां एक संपत्ति विवाद 35 साल से समेकन अधिकारी जौनपुर के समक्ष लंबित है और पीड़ित को 400 से अधिक तारीखें मिलीं लेकिन न्याय नहीं मिला।