गोंडा से दिल्ली, पंजाब और जयपुर तक चल रही बिना परमिट के बस, मानकों में भी खेल

गोंडा से दिल्ली, पंजाब या जयपुर जाना है और आपको ट्रेन की टिकट निकालने में देरी हो गई है तो चिंता न कीजिए। कल तक सौ पचास किलोमीटर तक डग्गामारी करने वालों ने अब अपना धंधा देश की राजधानी ही नहीं देश की सीमा तक विस्तृत कर लिया है। ये आपको नॉन स्टॉप सेवा की बस में आसानी से सीट या स्लीपर की जगह दिला देंगे, बस उनके मनमुताबिक नोट खर्च करते रहिए। हां, इतना जरूर है। अपने जान और माल का जिम्मा आप खुद ही संभालो, इन्हें इसकी नहीं पड़ी।

ये है डग्गामारी का खेल
दिल्ली और पंजाब समेत लंबे रूटों पर सवारियां बुक करके चलने के इस दो नम्बर के धंधे में इन बसों के मालिक और आरटीओ के अधिकारियों की मिलीभगत हुआ करती है। ये आरोप नहीं है जनाब, अधिकारियों की नाक के नीचे सबकुछ खुल्लमखुल्ला चल रहा है। राष्ट्रीय राजमार्ग पर अवैध तरीके से फर्जी परमिट पर चलने वाले ये डग्गामार सारा धंधा खुलेआम ऑनलाइन चलाते हैं। कांटेक्ट कैरेज की परमिट का इस्तेमाल स्टेज कैरेज की परमिट की तरह करते हैं जिनकी जानकारी अमूमन आमजन को नहीं होती। इस विभागीय गठजोड़ का इन्हें खूब लाभ होता है और इसमें अनजाने में आ फंसने वाली सवारियों को इसके रिस्क का पता भी नहीं होता।

खुल्लमखुल्ला सबकुछ ऑनलाइन
परमिट परमिट के खेल का फर्जीवाड़ा गुपचुप नहीं होता सबकुछ जिम्मेदारों की जानकारी में होता है। राष्ट्रीय राजमार्ग रूटों पर इन्हें मंजिली परमिट जारी करने वाले जिम्मेदार खुद अपने परिजनों को दिल्ली भेजने के लिए ऑनलाइन बुकिंग कराते हैं। मनकापुर बस अड्डे से संचालित ऐसी ही एक स्लीपर एसी और नॉन एसी बस सर्विस चलाने वालों ने शहर भर में बड़ी-बड़ी होर्डिंगे लगा रखी जिसपर बुकिंग के लिए वेबसाइट और मोबाइल नंबर दिए गए हैं।

दुर्घटनाएं कह रही हैं, मॉडल में है लोचा
आरटीओ के अधिकारियों का मानना है कि जो प्राइवेट बसें स्लीपर कोच के रूप में मोडिफाई कराई जाती हैं उन्हें ज्यादा सीटर बनाने के फेर में मनकों को रौंदा जाता है। आने और जाने का सिर्फ एक दरवाजा होता है, इमरजेंसी खिड़की तक पहुंचना सभी सीट वालों के लिए मुमकिन ही नहीं। कन्नौज की दुर्घटना में बस में आग लगी तो बाहर नहीं निकल पाने की वजह से बैठे लोग जिंदा जलने लगे। पूर्व में भी ऐसी कई दुर्घटनाएं हुई हैं जिसका साफ इशारा है कि मॉडल में ही कई खामियां हैं।

राष्ट्रीय राजमार्ग के लिए रोडवेज को है मंजिली परमिट – आरटीए और एसटीए के प्रावधानों  के अनुसार राष्ट्रीय राजमार्गों के लिए सिर्फ रोडवेज की बसों को ही आवागमन की मंजिली परमिट दी जाती है। लेकिन विभागीय सेटिंग गेटिंग से स्लीपर कोच वाली बसों को दिल्ली, पंजाब , जयपुर, लुधियाना के लिए धड़ल्ले से परमिट दे दी जाती है।

लेकिन यहां तो खटारा की भरमार- इन डग्गामारों की बीसों उंगली घी में होने की असल वजह सरकारी तंत्र की ढील ही है। मंडल मुख्यालय स्थित गोण्डा डिपो से संचालित 90 बसों में से 12 अनुबंधित बसें हैं। 13 बसें ऐसी हैं जोकि दस लाख से ज्यादा किलोमीटर चल चुकी हैं। 63 बसें 6 लाख किलोमीटर से ज्यादा चल चुकी हैं। इस संदर्भ में देवीपाटन मंडल के सेवा प्रबंधक रमेश कुमार ने बताया कि सिर्फ अच्छी कंडीशन की बसों को ही लांग रुट पर भेजा जाता है। अधिक चल चुकी गाड़ियां छोटी रूटों पर होती हैं।

जिम्मेदार बोले
आरटीओ प्रवर्तन राजेश श्रीवास्तव ने बताया कि अवैध तरीके से संचालित इन स्लीपर बसों के विषय मे जानकारी है। समय-समय पर इनका चालान भी किया जाता है। उन्होंने माना कि राष्ट्रीय राजमार्ग वाले रूटों पर इनका संचालन पूर्णतयः अवैध है। अभियान चलाकर इनके परमिट कैंसिल किए जाएंगे।

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