निर्भया गैंगरेप केस: दोषी विनय शर्मा की दया याचिका खारिज, दोषी अक्षय ठाकुर ने लगाई राष्ट्रपति से गुहार

निर्भया गैंगरेप केस के एक और दोषी अक्षय ठाकुर ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के समक्ष दायर याचिका दाखिल की है। इससे पहले शनिवार को राष्ट्रपति ने दोषी विनय शर्मा की दया याचिका को खारिज कर दिया था। शुक्रवार को दिल्ली की एक अदालत ने सभी दोषियों को फांसी देने के लिए जारी डेथ वारंट की पर फिलहाल रोक लगा दी। दोषियों को फांसी कब दी जाएगी, अदालत ने इस बारे में कोई तारीख निर्धारित नहीं की है।

अदालत ने शुक्रवार को कहा था कि निर्भया के गुनहगारों को अलग-अगल फांसी नहीं दी जा सकती है। अदालत ने तिहाड़ जेल प्रशासन की उस  दलील को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें निर्भया के गुनहगारों को अलग-अगल कर फांसी देने की मांग की गई थी।

निर्भया के गुनहगारों की फांसी अनिश्चितकाल के लिए टली
पटियाला हाउस कोर्ट स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने दोषियों की ओर से फांसी देने के लिए जारी ‘डेथ वारंट’ पर रोक लगाने की मांग को लेकर दाखिल अर्जी पर विचार करते हुए यह आदेश दिया है। दोषी विनय शर्मा, अक्षय सिंह और पवन गुप्ता की ओर से अधिवक्ता ए.पी. सिंह ने अदालत को बताया कि अभी उनके मुवक्किल के पास कई कानूनी विकल्प मौजूद हैं, ऐसे में फांसी देने के लिए जारी डेथ वारंट पर अनिश्चितकाल तक के लिए रोक लगा दी जाए।

हालांकि तिहाड़ जेल प्रशासन ने दोषियों की इस मांग का विरोध किया। जेल प्रबंधन ने अदालत को बताया कि दोषियों को अलग-अगल फांसी दी जा सकती है। सभी पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने फांसी देने के लिए जारी डेथ वारंट पर अनिश्चितकाल तक के लिए रोक लगा दी। साथ ही आदेश की प्रति दोषियों के वकील और जेल अधिकारियों को मुहैया करा दिया। अदालत ने जेल प्रशासन को इस आदेश का पालन सुनिश्चित करने और शनिवार को रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है।

फांसी देने के लिए कब-कब जारी हुआ आदेश
-7 जनवरी, 2020: अदालत ने डेथ वारंट जारी कर निर्भया के गुनहगरों मुकेश सिंह, विनय शर्मा, अक्षय सिंह और पवन गुप्ता को 22 जनवरी की सुबह 7 बजे फांसी देने का आदेश दिया।

-17 जनवरी, 2020: अदालत दोबारा से आदेश जारी कर फांसी देने के तारीख में बदलाव कर दिया। अदातल ने दोबारा से डेथ वारंट जारी करते हुए सभी दोषियों को 1 फरवरी की सुबह 6 बजे फांसी देने का आदेश दिया।

दोषियों के साथ नहीं किया जा सकता भेदभाव, भले ही फांसी की सजा क्यों न हुई हो
अदालत ने इस मामले में दोषियों द्वारा कानूनी दांवपेंच का इस्तेमाल कर फांसी को बार-बार लटकाए जाने पर टिप्पणी करने से इनकार करते हुए कहा कि ‘मौजूदा कानूनी व्यवस्था व प्रक्रिया में दोषी को अपनी बात कह सकता है और किसी भी सभ्य समाज का प्रतीक है। न्यायाधीश ने कहा है कि इस देश की अदालतें किसी भी दोषी, भले ही उसे मौत की सजा क्यों न हुई हो, के साथ किसी भी तरह की भेदभाव नहीं किया जा सकता है। इससे पहले पीड़िता की ओर से अधिवक्ता ने अदालत को बताया था कि दोषी कानूनी दांवपेंच का इस्तेमाल कर जानबूझकर फांसी की तारीख को लटका रहा है।

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