सुप्रीम कोर्ट का सरकार से सवाल – कृषि कानूनों पर रोक आप लगाएंगे या हम लगाए ?
नई दिल्ली: कृषि कानूनों पर करीब सवा महीने से अधिक समय से सड़कों पर घमासान जारी है। किसान आंदोलन और कृषि कानूनों की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई हो रही है। सुनवाई के दौरान ही चीफ जस्टिस ने कहा कि जिस तरह से प्रक्रिया चल रही है, हम उससे निराश हैं। कृषि कानूनों की वैधता को एक किसान संगठन और वकील एमएल शर्मा ने चुनौती दी है। शर्मा ने याचिका में कहा है कि केंद्र सरकार को कृषि से संबंधित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार नहीं है। कृषि और भूमि राज्यों का विषय है और संविधान की सातवीं अनुसूची की सूची 2 (राज्य सूची) में इसे एंट्री 14 से 18 में दर्शाया गया है। यह स्पष्ट रूप से राज्य का विषय है। इसलिए इस कानून को निरस्त किया जाए।
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे की अध्यक्षता वाली तीन जजों की के समक्ष सोमवार को ये सुनवाई इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि सरकार ने कहा है कि यदि सर्वोच्च अदालत किसानों के हक में फैसला देता है तो उन्हें आंदोलन करने की जरूरत नहीं रहेगी। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था केंद्र सरकार ने कानून समवर्ती सूची की एंट्री 33 के आधार पर बनाए हैं, उन्हें लगता है इस एंट्री से कृषि विपणन पर कानून बनाने का अधिकार है। गौरतलब है कि पिछली सुनवाई पर कोर्ट ने कहा था कि वह किसान आंदोलन को समाप्त करने और कृषि कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई करेगा। हालांकि, सरकार ने इसका विरोध किया था और कहा था कि यदि कानूनों की वैधता पर सुनवाई शुरू की गई, तो किसानों से बातचीत रोकनी पड़ेगी। सरकार ने कहा था कि किसानों से बातचीत का अगला दौर शनिवार को होगा। लेकिन ये बातचीत कल विफल हो गई। किसान कानूनों को वापस लेने पर अड़े हैं।