उल्लास और उमंग की ऋतु है वसंत

वैसे तो हमारे देश मुख्यत: तीन ऋतुएं ही मानी जाती हैं। इसमें शीत, ग्रीष्म  और अंत में वर्षा ऋतु आती है। लेकिन वास्तव  में कुल छह ऋतुएं होती हैं और ये हम सब का सौभाग्य है कि हमारे देश की माटी में सभी छह ऋतुएं निवास करती हैं। इसमें शरद, हेमंत, शिशिर, वसंत, ग्रीष्म, पावस ऋतु हैं। इन  सभी का मौसम के अनुसार अलग-अलग प्रभाव हैं। जैसे शुरूआती सर्दी को शरद् ऋतु कहा जाता है। इसमेंं हल्का जाड़ा पड़ता है। इसके बाद शिशिर में कड़ाके की सर्दी पड़ती है।
इसके बाद उतरते जाड़े को हेमंत कहा जाता हैं। इस मौसम में हल्की धूप में सर्दी की ऋतु का सुखद आनंद मिलता है।  इसी के बाद ही वसंत ऋतु आ जाती है। जब मौसम में बदलाव आता है। इस मौसम में न तो सर्दी ही होती है और न ही गर्मी होती है। वसंत के बाद ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो जाता है। ग्रीष्म में खूब गर्मी पड़ती है। इसके बाद आ जाती है पावस ऋतु। पावस ऋतु में जब वर्षा की फुहारे पड़ती हैं तो जीवन में चैतन्यता आ जाती है।
वसंत ऋतु को ऋतुराज कहा गया है। यह ऋतु अन्य सभी ऋतुओं का राजा मानी गई हैं। इसका कारण है इस ऋतु में प्रकृति अपना श्रंृगार करती है।  पतझड़ के बाद जब पेड़ों पर  नई-नई  कोपले फूट पड़ी हो तब समझना चाहिए कि ऋतुराज का आगमन हो चुका है। इस मौसम में ऐसा लगता है जैसे पेड़-पौघों ने नए वस्त्र धारण कर  लिए हो। इस मौसम में जहां एक ओर प्रकृति अपना श्रंृगार करती हैं वही दूसरी ओर मानव मन और तन दोनों को बड़ा सुकून मिलता है। शीत ऋतु में मोटे-मोटे कपड़ों को पहने के बाद जब वसंत ऋतु में हल्के कपड़े पहनने का अवसर आता है तो तन को बड़ा सुखद अनुभव होता है। मन प्रफुल्लित हो जाता है।
फाल्गुन से चैत्र मास तक दो महीनों की अवधि को वसंत का मौसम माना जाता है। इस मौसम में सभी रंग के फूल खेतों में खिले दिखते है। खेतों मेंं अंगड़ाई लेती पीली सरसों बरबस अपनी ओर आकर्षित करती है। इसके अलावा जौ, गेंहू, चना सहित रबी की अन्य फसलें खेतों में लहलहाने लगती हैं। जिसे देखकर किसान मन ही मन आनंद से झूम उठता है। उधर आम के पेड़ में बौर आना शुरू हो जाता है जिससे अमराई में भीनी-भीनी खुशबू फैलने लगती है। बौर को देखकर भी किसान खुशी से नाचने लगते हैं। वस्तुत: वसंत ऋतु नई फसल का संदेश देती है। किसान को सबसे ज्यादा प्रिय अपना खेत होता हैं । उसमें उगने वाली फसलें प्रिय होती हैं। जब फसलें अच्छी होती है तो किसान की खुशी का ठिकाना नहीं होता है। इसी ऋतु से फसलों की कटाई भी शुरू हो जाती है।  इसी मौसम मेंं माघशुक्ल पंचमी को पडऩे वाली वसंत पंचमी के त्यौहार से गांवों की चौपालों में फाग गायन शुरू हो जाता है।
पशु-पक्षियों में आ जाती है चैतन्यता
वसंत में मौसम में जहां पेड़-पौधे जहां नई पत्तियों को धारण कर आकर्षक लगने लगते हैं। वहीं पशु-पक्षियों में चैतन्यता आ जाती है। जैसे  कोयल की कूहु-कूहू सुनाई पडऩे लगती है। कोयल की बोली सभी कानों को मधुर लगती है।
वसंत के त्यौहार
वसंत की ऋतु में तीन  त्यौहार पडते हैं। पहला माघ माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी को वसंत पंचमी का त्यौहार मनाया जाता हैं। दूसरा फाल्गुन की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को महाशिवरात्रि है। तीसरा फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होली का त्यौहार मनाया जाता है।
महासरस्वती का पूजन किया जाता है। इस दिन लोग पीले वस्त्र धारण कर देवी की पूजा करते हैं। पूजन में आम की मंजरी और बेर चढ़ाया जाता हैं। वहीं घरों में लोग चावल की खीर बनाते है। लोक साहित्यकार विद्या बिंदू सिंह बताती हैं कि देवी की पूजन में आम का बोर, जौं की बाली चढ़ाई जाती है। यह त्यौहार नई फसल की संदेश देता है।
पंडित लोग अपने यजमानों के घर जाकर नई फसल का दर्शन कराने जाते हैं। विवाहित महिलाएं  धोबिन से सुहाग लेती हैं। उधर शिक्षा केंद्रों पर भी देवी का पूजन किया जाता है।  शिक्षा आरंभ करने वाले नौनिहालों का पाटी पूजन कराया जाता है। इसी दिन से होलिका की शुरूआत भी हो  जाती है।
चौराहों पर पर रेड़ी का डाल को गाड़ दिया जाता है। जहां लोग होलिका में जलाने के लिए लकडिय़ा इकटठा शुरू कर देते हैं। गोबर के उपले इकट्ठा होना भी शुरू हो जाता है। लोक गायिका कुसुम वर्मा बताती हैं कि वसंत पंचमी को जहां होलिका दहन होना होता है वहां से राख लाकर चूल्हे पर लगाई जाती है। इस दिन मां सरस्वती पर बेर चढ़ाकर ही बेर खाना शुरू किया जाता  है। घरों में गोबर के कंडे बनाने लगते हैं।
महाशिवरात्रि
फाल्गुन कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को महाशिवरात्रि मनाई जाती है। इस दिन भगवान शिव का पूजन किया जाता है। इस दिन लोग व्रत रखते हैं और भगवान शिव को पुष्प, मदार, धतूरा, भांग, दूध चढ़ाते हैं। यह भगवान शिव का महाव्रत होता है। इसमें तीन पहर की पूजा की जाती हैं और रात्रि  जागरण किया जाता है।
होली
फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होली का त्यौहार मनाया जाता है। यह बड़ा मस्ती भरा त्यौहार होता है। इसमें लोग एक -दूसरे को रंग लगाते हैं और होली की बधाई की देते हैं। इस दिन एक विशेष पकवान गुझिया जरूर घर-घर में बनाई जाती है।
राम नवमी
चैत्र की शुक्ल नवमी को भगवान श्रीराम का जन्म पर्व श्रीराम नवमी मनाई  जाती है। इस दिन लोग विधि विधान से भगवान का पूजन करते हैं। वसंत ऋतु लोगों में उमंग छा जाने वाला मौसम होता है। लोग मस्तियाते जाते हैं। जहां एक ओर प्रकृति, पशु-पक्षी मेंं एक परिवर्तन, हलचल मचती है। वहीं मानव जाति में एक मौसम का नशा छा जाने लगता हैं। पछुआ हवा जब शरीर को छूती है तो एक अजीब सी सिहरन भर जाती है। कामदेव को वसंत भी कहते हैं।
माना जाता है कि कामदेव का प्रभाव इस  मौसम में पूरी प्रकृति पर होता है। वसंत ऋतु में  इंसान की काम भावना जागृत हो जाती है। प्रकृति में इतना सौन्दर्य आ जाता है कि इंसान सौन्दर्य की ओर आकर्षित होने लगता है। लोक साहित्यकार डॉ. राम बहादुर मिश्र बताते हैं कि हंसी में एक बात कही भी जाती है कि होली में बाबा देवरा लागे। वह बताते हैं कि वसंत पंचमी से गांव की चौपालों पर फाग गायन श्शुरू हो जाता है। इसमें होरी, डेढ़ ताल, चौताल और धमार गया जाता है। गांव में तालाब के किनारे होलिका गाड़ी जाती है। इसी दिन से यहां लोग उपले इकट्ïठा करना शुरू कर देते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button