तालिबान को सत्‍ता में वापसी में चाहिए अमेरका की मदद, ईरान और अमेरिका के बीच भविष्‍य में….

अफगानिस्‍तान की शांति को लेकर सरकार और तालिबान के बीच होने वाली बातचीत का समय लगातार नजदीक आ रहा है। ये बातचीत 10 मार्च को होनी है। हालांकि अब तक इसको लेकर न तो अफगान सरकार ने किसी दल का गठन किया है और न ही वार्ता से पहले तालिबान कैदियों की रिहाई को तैयार है। अमेरिका ने यहां से अपनी वापसी का रास्‍ता साफ कर लिया है। हालांकि विशेषज्ञ अफगानिस्‍तान को लेकर हुए समझौते के पीछे कुछ और ही वजह बता रहे हैं।

विदेश मामलों के जानकार कमर आगा ने बातचीत के दौरान इस समझौते के पीछे तीन संभावित तथ्‍यों की तरफ इशारा किया है। उन्‍होंने जिन दो तथ्‍यों की तरफ इशारा किया है उसमें पहला ईरान के मसले पर अमेरिका को तालिबान की दरकार और दूसरा अफगानिस्‍तान में मौजूद अपने सैन्‍य ठिकानों को पूरी तरह से बंद न करना है। तीसरी वजह तालिबान की सत्‍ता में वापसी में अमेरकी मदद।

आगा की मानें तो ईरान और अमेरिका के बीच भविष्‍य में तनाव बढ़ सकता है। इसको देखते हुए अमेरिका को तालिबान का साथ चाहिए। यहां पर ये बताना जरूरी है कि अब अमेरिका को लगने लगा है कि इतने वर्षों तक मदद करने के बाद भी अफगानिस्‍तान की सरकार ने उनके हितों की तरफ कोई ध्‍यान नहीं दिया है। इतने वर्षों में अफगान सरकार न तो तालिबान को ही रोक सकी, न ही ईरान पर उसका साथ अमेरिका को मिल सका और न ही ग्राउंड पर उसके जवानों की मौत के आंकड़े को कम किया जा सका। इसके उलट अफगानिस्‍तान सरकार लगातार ईरान से बेहतर संबंधों की तरफ आगे बढ़ रही है जो कहीं न कहीं अमेरिकी नीति के खिलाफ है। यही वजह है कि अब ईरान पर काबू पाने के लिए अफगान सरकार से ज्‍यादा अमेरिका को अब तालिबान पर भरोसा है।

उनका ये भी कहना है कि इसमें कुछ समस्‍या तालिबान की तरफ से जरूर हो सकती है। इसकी वजह ये है कि तालिबान कई गुटों में बंटा हुआ है, जिन्‍हें साधना अमेरिका के लिए कुछ मुश्किल हो सकता है। उनकी मानें तो ईरान को साधने के लिए अमेरिका अफगानिस्‍तान में बने अपने सैन्‍य बेस को पूरी तरह से बंद नहीं करेगा। इसकी वजह है कि वह जरूरत पड़ने पर अफगानिस्‍तान और इन सैन्‍य बेस का इस्‍तेमाल कर सकेगा। ऐसा वो दूसरे देशों में भी कर चुका है।

आगा ये भी मानते हैं कि तालिबानी का मकसद अफगानिस्‍तान में सरकार बनाना जरूर है लेकिन अब हालात पहले से काफी कुछ बदल चुके हैं। अब अफगानिस्‍तान की फौज पहले की तरह कमजोर नहीं है। वह तालिबान के हर हमले का जवाब देने में सक्षम है। इसके अलावा अफगानी भी तालिबान को पसंद नहीं करते हैं। अफगानी महिलाएं तालिबान के सख्‍त खिलाफ हैं। इसकी वजह है कि उन्‍होंने तालिबान हुकूमत का बुरा वक्‍त देखा है। बहुत कम जगहों पर खासतौर पर सीमावर्ती इलाकों में कुछ जगहों पर तालिबान को समर्थन देने वाले लोग मौजूद हैं। इसके अलावा अफगानिस्‍तान की हजारा कम्‍यूनिटी तालिबान के सख्‍त खिलाफ है। ये बेहतरीन लड़ाके भी हैं और भारत के समर्थक भी हैं। पश्‍तून का हाल भी ऐसा ही है। ऐसे में सत्‍ता हासिल करने के मकसद में अमेरिका उनकी मदद कर सकता है। ये मदद शुरुआत में सत्‍ता में भागीदारी से हो सकती है और बाद में अपने दम पर सरकार बनाने की भी हो सकती है।

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