पौड़ी गढ़वाल के धीरेंद्र ने गांव की बंजर जमीन पर लगाया सोलर प्लांट, पत्नी ने नहीं डिगने दिया हौसला

कुछ अपना करेंगे…। आज हर युवा में इसकी चाहत क्यों बढ़ रही है, यह कोई धीरेंद्र सिंह रावत से समझे। 31 साल तक राष्ट्रीय राजधानी के नोएडा-दिल्ली में अंतहीन संघर्ष के बाद गांव लौटे तो गांव में सोलर प्लांट लगाया। आज यह प्लांट न केवल उनके, बल्कि के गांव और आसपास के लोगों के लिए भी नई उम्मीदें बना है। 53 वर्षीय धीरेंद्र सिंह रावत उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल के ग्राम ओड्डा के रहने वाले हैं।

वह बताते हैं कि बचपन बेहद गरीबी में बीता। 11 वर्ष की उम्र में सिर से पिता का साया उठ गया। परिवार में कोई कमाने वाला नहीं था, सो 16 वर्ष की उम्र में रोजगार के लिए नोएडा की राह पकड़ ली। वहां कभी पेट्रोल पंप पर सेल्समैन की नौकरी की तो कभी कंस्ट्रक्शन के क्षेत्र में हाथ आजमाया। 31 साल नोएडा-दिल्ली की खाक छानते रहे और जब वर्ष 2011 में गांव वापस लौटे तो सारी जमा पूंजी गांव के विकास में लगा दी। वर्ष 2015 में गांव के समीप बंजर भूमि पर सोलर प्लांट स्थापित किया।

आज 500 किलोवाट के इस सोलर प्लांट में प्रतिवर्ष सात लाख यूनिट बिजली का उत्पादन हो रहा है। यह बिजली यूपीसीएल (उत्तराखंड पॉवर कॉरपोरेशन लिमिटेड) को बेची जाती है, जिससे धीरेंद्र को प्रतिमाह चार लाख रुपये की आमदनी हो रही है। सोलर प्लांट को स्थापित करने में सात करोड़ से अधिक की लागत आई। इसके लिए बैंक से भी 2.80 करोड़ का ऋण लिया। अब इसका बड़ा हिस्सा चुकाया जा चुका है।

सोलर प्लांट में गांव के संजय, सोबन, शाकंबरी व जगदीश समेत कई लोगों को रोजगार मिला हुआ है। धीरेंद्र बताते हैं कि महिलाओं को फिलहाल चार हजार रुपये और पुरुषों को आठ हजार रुपये प्रतिमाह के हिसाब से भुगतान किया जा रहा है। अब उनकी कोशिश इस प्रोजेक्ट में तीन दर्जन से अधिक लोगों को रोजगार देने की है।

पत्नी ने नहीं डिगने दिया हौसला 

धीरेंद्र बताते हैं कि सोलर प्लांट लगाने में उनके सामने कई समस्याएं आईं, लेकिन, पत्नी शकुंतला रावत ने उन्हें हमेशा हौसला दिया। यही वजह है कि वह पहाड़ की खुशहाली के लिए दोगुने जोश के साथ कार्य कर रहे हैं। बताते हैं कि अब वह फल व पुष्पोत्पादन के जरिये भी लोगों को रोजगार मुहैया करा रहे हैं।

जल संचय को बनाया एक लाख लीटर क्षमता का टैंक

कोट निवासी सेवानिवृत्त खंड विकास अधिकारी बताते हैं कि धीरेंद्र के कदम यहीं नहीं थमे। उन्होंने गांव के समीप ही बरबाद हो रहे प्राकृतिक स्नोत के पानी को एकत्रित करने के लिए एक बड़ा टैंक बनाया। इस टैंक में हर समय एक लाख लीटर से अधिक पानी जमा रहता है। इसका उपयोग वह फलोद्यान और फुलवारी की सिंचाई के लिए करते हैं। इसके अलावा उनकी अब एक रिसॉर्ट खोलने की योजना भी है। ताकि स्थानीय लोगों को रोजगार मिल सके।

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