बिहार में महिलाओं ने शुरू की कोरोना ‘माई’ की पूजा
बिहार। लोग कोरोनावायरस से कितने परेशान हो चुके हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि बिहार में लोग कोरोना की पूजा करके उसे भगाने में लगे हैं। यहां कोरोना को ‘माई’ (देवी) बना दिया गया है। इसी कारण इस संक्रमण से छुटकारा पाने को लेकर गांव की महिलाएं अब कोरोना देवी की पूजा करने में जुट गई हैं।
बिहार के नालंदा, गोपालगंज, सारण, वैशाली, मुजफ्फरपुर सहित कई जिलों में कोरोना को दूर करने के लिए कोरोना देवी की पूजा की जा रही है। गांव की महिलाएं समूह बनाकर जलाशयों के किनारे पहुंचकर ‘कोरोना देवी’ की पूजा कर रही हैं। यह सिलसिला चार-पांच दिनों से चल रहा है।
इस पूजा को लेकर सोशल मीडिया पर वीडियो भी खूब वायरल हो रहा है। हालांकि, इस दौरान महिलाएं सोशल डिस्टेंसिंग का भी ख्याल रख रही हैं। गोपालंगज में फुलवरिया घाट पर पूजा करने पहुंची महिलाए सात गड्ढे खोद कर उसमें गुड़ का शर्बत डालकर के साथ लौंग, इलायची, फूल व सात लड्डू रखकर पूजा करने जुटी, जिससे महामारी से छुटकारा मिल जाए।
मुजफ्फरपुर के ब्रह्मपुरा स्थित सर्वेश्वरनाथ मंदिर में पिछले तीन दिनों से ‘कोरोना माता’ की पूजा करने पहुंच रही हैं। इस पूजा करने के संबंध में महिलाओं ने बताया कि एक वीडियो के माध्यम से उन्होंने जाना कि कोरोना को अगर भगाना है, तो उनकी पूजा लड्डू, फूल और तिल से करनी होगी। जबकि एक अन्य महिला इसे एक सपने से जोड़कर कहानी बता रही है।
इधर, बक्सर जिले के कई प्रखंडों में भी कोरोना देवी की पूजा में महिलाएं व्यस्त हैं. महिलाओं का समूह गंगा में स्नान कर नदी किनारे पूजा अर्चना कर रहा है. सात गड्ढे बनाए गए और धूप-दीप करने के बाद उन गड्ढों में लड्डू और गुड़हल का फूल के साथ गुड़ और तिल को जमीन में दबा दिया गया।
कई इलाकों में ‘कोरोना देवी’ के लिए पुआ पकवान बनाकर भी पूजा करने की बात सामने आ रही है. सबसे आश्चर्यजनक बात है कि इसमें सभी वर्ग की महिलाएं शामिल हैं।
मुजफ्फरपुर के पंडित विनय पाठक कहते हैं कि यह पूरी तरह अंधविश्वास है. कहीं किसी भी धार्मिक ग्रंथ में ‘कोरोना देवी’ का उल्लेख नहीं है। उन्होंने कहा कि किसी भी महामारी से बचने के लिए चिकित्सकों से उपचार कराया जाना जरूरी है. उन्होंने भी माना कि इस अंधविश्वास में लोग कोरोना की पूजा कर रहे हैं।
इधर, बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर बिहार विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र के प्रोफेसर बी एन सिंह कहते हैं, “जब भी हमारे ऊपर कोई कष्ट आता है, तब हम सभी भगवान की शरण में पहुंच जाते हैं। कई मौकों पर यह आस्था ही अंधविश्वास का रूप ले लेती है। कोरोना को लेकर भी यही स्थिति उत्पन्न हुई है। लोग इस महामारी से बचने के लिए आस्था और अंधविश्वास में पहुंच गए हैं।”
उन्होंने कहा कि आस्था और अंधविश्वास में नकल की प्रवृत्ति रही है। एक-दूसरे को देखकर लोग पूजा कर रही हैं। गोपालगंज के सिविल सर्जन डॉ. त्रिभुवन नारायण सिंह इसे पूरी तरह अंधविश्वास बताते हैं. उन्होंने कहा कि आस्था अलग चीज है और विज्ञान अलग है. कोरोना महामारी है, इसका इलाज जरूरी है।