भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं मोदी : अमेरिकी समाजसेवी
तानाशाहों से निपटने के लिए 7100 करोड़ का फंड बनेगा
दावोस. यहां चल रहे वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम में गुरुवार को अमेरिकी अरबपति समाजसेवी जॉर्ज सोरोस ने अपने विचार रखे। राष्ट्रीयता के मुद्दे पर सोरोस ने कहा कि अब इसके मायने ही बदल गए हैं। भारत में लोकतांत्रिक तरीके से चुने गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को एक हिंदू राष्ट्र बनाना चाहते हैं।
वे अर्धस्वायत्तशासी मुस्लिम क्षेत्र कश्मीर में दंडनीय (अनुच्छेद 370 को हटाना) कदम उठा रहे हैं। साथ ही सरकार के फैसलों (नागरिकता संशोधन कानून) से वहां रहने वाले लाखों मुसलमानों पर नागरिकता जाने का संकट पैदा हो गया है। सोरोस ने यह भी कहा, ‘‘सिविल सोसाइटी में लगातार गिरावट आ रही है।
मानवता कम होती जा रही है। ऐसा लगता है कि आने वाले सालों में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के भाग्य से ही दुनिया की दिशा तय होगी। इस समय व्लादिमीर पुतिन, ट्रम्प और जिनपिंग तानाशाह जैसे शासक हैं। सत्ता पर पकड़ रखने वाले शासकों में इजाफा हो रहा है।
’’सोरोस ने यह भी कहा, ‘‘इस वक्त हम इतिहास के बदलाव के दौर से गुजर रहे हैं। खुले समाज की अवधारणा खतरे में है। इससे बड़ी एक और चुनौती है- जलवायु परिवर्तन। अब मेरी जिंदगी का सबसे अहम प्रोजेक्ट ओपन सोसाइटी यूनिवर्सिटी नेटवर्क (ओएसयूएन) है।
यह एक ऐसा प्लेटफॉर्म है, जिसमें दुनिया की सभी यूनिवर्सिटी के लोग पढ़ा और शोध कर सकेंगे। ओएसयूएन के लिए मैं एक अरब डॉलर (करीब 7100 करोड़ रुपए) का निवेश करूंगा।’’ हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबन के दबाव के चलते सोरोस की सेंट्रल यूरोपियन यूनिवर्सिटी (सीईयू) को देश छोड़ना पड़ा था।
अमेरिकी समाजसेवी ने यह भी कहा कि ओएसयूएन को लाने में अभी थोड़ा वक्त जरूर लगेगा। सोरोस के मुताबिक, ‘‘जिन हाथों में अभी अमेरिका की कमान (डोनाल्ड ट्रम्प) है, वे आत्ममुग्धता के शिकार हैं। ट्रम्प इस साल होने वाले राष्ट्रपति चुनाव तक अर्थव्यवस्था में गिरावट को मैनेज करेंगे, लेकिन इसे लंबे समय तक एक स्थिति में कायम नहीं रखा जा सकता।
’‘‘शी जिनपिंग भी कम्युनिस्ट पार्टी की परंपरा तोड़ रहे हैं। उन्होंने खुद के आसपास सत्ता केंद्रित कर रखी है। चीन की अर्थव्यवस्था भी अपना लचीलापन खो रही है। जिनपिंग एक नए तरह की सत्तावादी व्यवस्था चाहते हैं। वे व्यक्तिगत स्वायत्तता को खत्म कर देना चाहते हैं। इसमें खुले समाज के लिए कोई जगह नहीं होगी।’’