मिलिए नीरज चोपड़ा व निषाद जैसे एथलीट देने वाले इस द्रोणाचार्य से

इन दिनों देश में टोक्यो ओलंपिक के मेडल का खुमार ही छाया हुआ है। टोक्यो में देश ने कुल 7 मेडल जीते थे। इनमें से एक गोल्ड, दो सिल्वर व चार ब्राॅन्ज हैं। वहीं टोक्यो पैराओलंपिक में भी मेडल की बारिश जारी है। पैराओलंपिक में अब तक देश ने कुल पांच मेडल अपने नाम किए हैं। इनमें दो गोल्ड भी शामिल हैं। खास बात ये है कि हम मेडल लाने वाले खिलाड़ियों को लेकर तो कई सारी कहानियां जान रहे हैं पर उनकी जीत के पीछे उन्हें ट्रेंड करने वाले कोच को लेकर कोई कहानी सामने नहीं आती है। तो चलिए जानते हैं कि उनकी सफलता के पीछे किस कोच का हाथ हैं।

नीरज चोपड़ा व निषाद की जीत के पीछे इनका हाथ

वो कहावत है न कि असली हीरे की परख पर जौहरी ही कर सकता है। इन भारतीय पदकधारी खिलाड़ियों के साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ। उनके गुरुओं ने उनके छुपे टैलेंट को पहचाना और उन्हें अपने टैलेंट के साथ आगे बढ़ने का हौसला दिया। बता दें कि कुछ दिनों से जेवलिन थ्रो में गोल्ड जीतने वाले नीरज चोपड़ा का नाम सोशल मीडिया पर अब भी छाया हुआ है। एथलेटिक्स के इतिहास में नीरज ने देश के नाम पहला गोल्ड किया है। वहीं निषाद कुमार ने पैराओलंपिक में ऊंची कूद में सिल्वर जीत कर नाम रोशन किया है। इन्हें ट्रेंड करने के पीछे जानें किसका हाथ रहा है।

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पैसे से लेकर हर चीज में खड़े रहे ढाल बन कर

2011 में नीरज को पंचकूला के ट्रेनर नसीम ने ताऊ देवी लाल स्पोर्ट्स काॅम्प्लेक्स में पहली दफा देखा था। तब नीरज महज 13 साल के थेे और अकाडमी में नाम दर्ज कराने गए थे। उस वक्त उन्हें ट्रेनर ने पहचान लिया था और खेल के दौरान उन्हें ट्रेन भी करने लगे थे। वहीं साल 2017 में निषाद कुमार भी इसी काॅम्प्लेक्स में आए। निषाद का परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा था और उस वक्त ट्रेनर नसीम ने उनकी बहुत सहायता की थी। निषाद को अपने खेल के हिसाब से सही खुराक तक नहीं मिल पा रही थी तब नसीम ने मदद की थी। एक बार किसी टूर्नामेंट के लिए निषाद को 40 हजार रुपये चाहिए थे। तब नसीम ने झट से निकाल कर दे दिए थे। नसीम ही दोनों की सफलता की पहली कुंजी साबित हुए।

ऋषभ वर्मा

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