साहित्य और साहित्यकार ही हमारी परम्परा को यशस्वी बनाते हैं

  • माज को बेहतर बनाने के लिए निरन्तर कार्य करते हैं, साहित्यकार – डॉ0 अरुण सक्सेना, राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार)

लखनऊ: 03 दिसम्बर, 2023

जिस राष्ट्र के नागरिक और वहाँ का समाज यदि साहित्य और अपने साहित्यकार का सम्मान नहीं करता तो वह देश अपनी परम्परा को लम्बे समय तक जीवित रख नही पाता। ये साहित्य और साहित्यकार ही हमारी परम्परा को यशस्वी बनाते हैं। अतः इनका सम्मान हमारा कर्तव्य है। भाऊराव देवरस सेवा न्यास युवा साहित्यकारों को सम्मानित कर उसी राष्ट्रीय जिम्मेदारी को निभा रहा है।

उक्त बातें लखनऊ स्थित माधव सभागार सरस्वती कुंज, निराला नगर में भाऊराव देवरस सेवा न्यास द्वारा आयोजित 29वें पं. प्रतापनारायण मिश्र स्मृति युवा साहित्यकार को सम्बोधित करते हुए कार्यक्रम के मुख्य अतिथि श्री केशव प्रसाद मौर्य उप मुख्यमंत्री ने कहा। उन्होने कहा कि आप जिनका जीवन सम्मानित प्रचारक के रूप में रहा और आगामी पीढ़ियों के लिए प्रेरणास्पद साहित्य लिखनेवाले पं. प्रतापनारायण मिश्र के नाम से दिया जाने वाले सम्मान का कार्यक्रम कई मायने में महत्वपूर्ण है। भाऊराव देवरस जी के नाम से बने इस न्यास के द्वारा सेवा के इतने कार्य किए जा रहे हैं वह समाज को जोड़नेवाले महत्वपूर्ण कार्य हैं। अलग-अलग राज्यों से चुनकर साहित्यकारों को उनके लेखन के लिए उन्हें सम्मानित हर वह अच्छी और सही चीज समाज के सामने लाने के लिए साहित्यजगत् में जो कार्य हो रहा है वह उत्तरदायित्वपूर्ण कार्य हो रहा है। साहित्यकारों की भूमिका प्रबल है, क्योंकि साहित्यकार सप्रमाण विचारों को उद्वेलित करने का कार्य साहित्यकार करते हैं।

कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि डॉ0 अरुण सक्सेना, राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) वन एवं पर्यावरण ने कहा कि न्यास शिक्षा, स्वास्थ्य और सेवा के क्षेत्र में बहुत सराहनीय कार्य कर रहा है। युवा साहित्यकारों को केवल उ0प्र0 से ही नहीं अपितु पूरे देश से चयन को प्रत्येक व्यक्ति साहित्यकार नहीं हो सकता है। जन्मजात गुणों से युक्त होने के कारण ही साहित्यकार बन पाते हैं। साहित्यकार समाज को बेहतर बनाने के लिए निरन्तर कार्य करते हैं अतः साहित्यशिल्पी के साथ ही समाजशिल्पी भी होता है।

सम्मान समारोह कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रो. संजय सिंह कुलपति बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर केन्द्रीय विश्वविद्यालय लखनऊ ने कहा अपने वैचारिक धरातल को साहित्यकार लोग मजबूती प्रदान करते हैं अतः साहित्यकार की उपादेयता सभी युग में रही है। मेरा यह मानना है कि भाऊराव जी जैसे चुम्बकीय व्यक्तित्व के धनी महापुरुष के नाम पर गठित यह न्यास समाज के अन्तिम छोर पर रहनेवाले अभावग्रस्त लोगों की चिन्ता तो करता ही है साथ ही प्रेरणापूर्ण साहित्य को लिखने का क्रम बना रहे इस निमित्त न्यास नवोदित साहित्यकारों को समाज के सामने लाने का कार्य किया जा रहा है। सभी को जोड़कर सभी को साथ लेकर चलने वाले ज्ञान ही सच्चा साहित्य है। जुड़ने के भाव होने के कारण ही सच्ची साहित्य ही दीर्घजीवी हो पाता है। हमारी संस्कृति में संस्कार का महत्व केवल व्यक्ति के जीवन में ही नहीं अपितु साहित्य में सभी संस्कार दिखे इस अपेक्षा साहित्यकार और वैज्ञानिक दोनों का सृजन का कार्य करते हैं और सृजन समाज के समस्याओं के समाधान करने की दृष्टि से करते हैं। परन्तु वैज्ञानिक को सृजन के लिए लम्बी प्रक्रिया से गुजरने पड़ता है। परन्तु साहित्यकार को अपने भाव को वाक्यों मे समेटने में लम्बी प्रक्रिया से गुजरना नहीं पड़ता है। अतः साहित्यकार कम समय में ही सृजन कर समाज को लाभ पहुँचाता है और उसका प्रभाव भी दिखता है।

सम्मान समारोह में से क्रमशः काव्य विधा में डॉ. सत्यवान ‘सौरभ’ भिवानी, हरियाणा, कथा-साहित्य विधा में मोरेश्वर राव उलारे, उज्जैन, मध्य प्रदेश पत्रकारिता विधा में लोकेन्द्र सिंह, भोपाल, मध्य प्रदेश, बाल-साहित्य विधा में मानसी शर्मा, हनुमानगढ़, राजस्थान, संस्कृत में डॉ. बिपिन कुमार झा, लखनऊ, उ0प्र0 तथा गुजराती भाषा में डॉ. केतन कानपरिया, अमरेली, गुजरात को पुरस्कृत पुरस्कृत किया गया। पुरस्कार स्वरुप 25,000 रूपये की धनराशि, अंग वस्त्र, व स्मृति चिन्ह तथा ‘पं0 प्रताप नारायण मिश्र रचित साहित्य प्रदान किया गया। सत्यवान ‘सौरभ’ का सम्मान उनके प्रतिनिधि श्री दीनदयाल शर्मा ने ग्रहण किया।

कार्यक्रम के संयोजक प्रो0 विजय कर्ण ने कार्यक्रम की पृष्ठभूमि बताते हुए पं0 प्रतापनरायण मिश्र का जीवन परिचय और कार्य को रेखांकित किया कहा कि 40 वर्ष तक की आयु के साहित्यकारों के द्वारा अपनी रचनाओं से युवाओं में देशभक्ति, मातृ-पितृ भक्ति और भारतीय संस्कृति के प्रति सम्मान और श्रद्धा भरी जाती है, उनका सम्मान न्यास द्वारा प्रतिवर्ष छः लोगों को सम्मानित कर किया जाता है। इस अवसर पर डॉ. कर्ण ने हिन्दी तथा संस्कृत एवं क्षेत्रीय भाषाओं गुजराती भाषा को एक दूसरे का पूरक बताया। सम्मानित होने वाले सभी साहित्यकारों ने भी अपने विचार व्यक्त किये।

कार्यक्रम प्रो. विजय कर्ण ने समारोह में अतिथियों का परिचय कराया। न्यास का परिचय ओ.पी. श्रीवास्तव जी के द्वारा किया। आये हुए अतिथियों का जितेन्द्र अग्रवाल ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम का प्रारम्भ डॉ. हेमचन्द्र पालीवाल तथा जयपुरिया विद्यालय के छात्रों के द्वारा प्रस्तुत वैदिकमंगलाचरण डा0 सदानन्द झा से एवं चित्रांश अस्थना ने प्रस्तुत वंदेमातरम् से कार्यक्रम का समापन हुआ। कार्यक्रम में प्रमुख रूप से, श्रीमान जयकृष्ण सिन्हा, डॉ. जयवीर सिंह, डॉ.नीरांजलि सिन्हा, डॉ.स्नेहलता जी, डॉ.एल.एस. तिवारी, प्रो. मनोज अग्रवाल, प्रो. रिपुसूदन सिंह, प्रो. बृजेन्द्र पाण्डेय, श्री बृजेशचन्द्र जी, प्रो. आनंद प्रताप, डॉ. विनय मिश्रा, अनन्त शर्मा, डॉ.सौरभ पाल, रत्नेश कुमार, वीरेन्द्र यादव, रघुराज सिंह, अरविंद शर्मा, आशुतोष प्रताप सिंह आदि उपस्थित थे।

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