कांग्रेस पर नकारात्मक राजनीति करने का भाजपा ने लगाया आरोप

भाजपा ने कांग्रेस पर नकारात्मक राजनीति करने का आरोप लगाया है। भाजपा ने कहा कि अपने अस्तित्व को बचाने की छटपटाहट में कांग्रेस नेता बेवजह मुद्दों को तूल दे रहे हैं। भाजपा ने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री एक ओर भाजपा के कार्यक्रमों पर सवाल उठा रहे हैं, वहीं कांग्रेस के धरना प्रदर्शन पर चुप्पी साधे हुए हैं। उन्हें इन कार्यक्रमों पर भी सवाल उठाने चाहिए।

भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी अजेंद्र अजय ने कहा कि त्रिवेंद्र सरकार के तीन साल पूरे होने के अवसर पर कांग्रेस खिसियाहट में धरना प्रदर्शन का आयोजन कर रही है। बेहतर होता कि कांग्रेस और उसके नेता सकारात्मक विपक्ष की भूमिका निभाते और सरकार के तीन वर्ष पूरे होने वाले कार्यक्रमों में सहभागिता करते।

उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत द्वारा कोरोना वायरस के चलते इन कार्यक्रमों पर सवाल उठाने को हास्यास्पद बताया। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार कोरोना को लेकर सतर्क है और मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत खुद नियमित रूप से इसकी निगरानी कर रहे हैं। पूर्व मुख्यमंत्री को इन कार्यक्रमों पर सवाल उठाने से पहले कांग्रेस द्वारा 18 मार्च को आयोजित करने वाले धरना प्रदर्शन कार्यक्रम पर सवाल उठाना चाहिए।

वहीं, भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष देवेंद्र भसीन ने भी सरकार के तीन वर्ष पूरे होने पर सरकार के कार्यक्रमों का कांग्रेस द्वारा बहिष्कार किए जाने पर तंज कसा है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस नेता भी अजीब हैं। यदि बुलाओ तो आते नहीं और यदि किसी कारण बुलावा छूट जाए तो उपेक्षा का शोर मचा देते हैं।

उन्होंने कहा कि यह कार्यक्रम सरकारी है और सरकार ने बिना किसी भेदभाव के सभी को आमंत्रित किया है। यह यादगार कार्यक्रम होगा और सभी विधानसभा क्षेत्रों व पूरे प्रदेश के विकास की तस्वीर जनता के सामने आएगी।

दो राजधानियों का विचार उचित नहीं

वरिष्ठ कांग्रेस नेता योगेंद्र खंडूड़ी ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने के सरकार के कदम पर सवाल दागे हैं। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को भेजे पत्र में उन्होंने कहा कि उत्तराखंड जैसे राज्य के लिए दो राजधानियों का विचार उचित नहीं है। एक ही स्थान पर स्थायी राजधानी की घोषणा शीघ्र होनी चाहिए।

पत्र में उन्होंने कहा कि ग्रीष्मकालीन राजधानी को तोहफा बताया जा रहा है। सरकार को बताना चाहिए कि ग्रीष्मकालीन राजधानी तोहफा है या स्थायी राजधानी। उन्होंने कहा कि देश में 29 राज्यों में से केवल तीन राज्यों में ही दो-दो राजधानियों का विधान है। सरकार ने यह भी स्पष्ट नहीं किया कि ग्रीष्मकालीन राजधानी सालभर में कितने महीने काम करेगी। जब राजधानियां इधर से उधर शिफ्ट होती हैं तो जनता का कोई काम उस दौरान सुव्यवस्थित तरीके से नहीं हो पाता है।

उन्होंने कहा कि राजधानी के मामले में दल हित से हटकर राज्य हित में सोचना चाहिए। यह मुद्दा अत्यंत संवेदनशील है। सरकार किसी दबाव के कारण राजधानी चुनने में कठिनाई महसूस कर रही है तो यह विषय आम जनता पर छोड़ देना चाहिए। उन्होंने इस मुद्दे पर सीधे जनता के बीच जनमत संग्रह कराने का सुझाव दिया।

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